पंजाब व हरियाणा में कई सरकारें बनीं, मगर नहीं बन सकी लिंक नहर !
punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2023 - 10:57 AM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : हरियाणा को अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए लगभग 56 वर्ष बीत चुके हैं और इस दौरान हरियाणा व पड़ौसी राज्य पंजाब में कई सरकारें बनी, मगर दोनों राज्यों के लिए नाक का सवाल बनी सतलुज यमुना लिंक नहर का न तो निर्माण हो सका और न ही बंटवारे मुताबिक पानी मिला । अब जबसे पिछले वर्ष मार्च में पंजाब में हुए सत्ता परिवर्तन के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तबसे एस. वाई. एल नहर का मामला फिर से गर्माया हुआ है । इस विषय पर हरियाणा व पंजाब सरकार के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं और दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी बैठकें कर चुके हैं, मगर अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया है । बुधवार को भी इसी विषय पर नई दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की बैठक हुई, मगर इस बैठक का नतीजा भी वही ढाक के तीन पात वाला ही रहा यानी यह बैठक भी बेनतीजा सी साबित हुई ।
गौरतलब है एस.वाई.एल नहर को हरियाणा के लिए जीवन रेखा माना जाता है और इस संबंध में 2016 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हरियाणा के हक में फैसला सुनाते हुए यह भी सुझाव दिया था कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक साथ बैठकर इस विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान करना चाहिए, मगर सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के लगभग 6 वर्ष बाद भी यह विवाद जस का तस ही बना हुआ है । बुधवार को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक से पहले भी दोनों राज्यों के बीच इस अहम विषय पर आधिकारिक व मुख्यमंत्री स्तर की कई बैठकें हो चुकी हैं और सभी बिना किसी नतीजे के ही खत्म हुई हैं ।हरियाणा जहां अपने हिस्से के पानी को लेकर लड़ाई लड़ता चला आ रहा है तो वहीं पंजाब हर बार यही बात दोहरा रहा है कि उसके पास हरियाणा को देने के लिए पानी है ही नहीं । ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें बनती रहीं, मगर इतनी लंबी अवधि में नहर नहीं बन पाई और एक तरह से यह अहम मुद्दा राजनीतिक मुद्दा ही बनकर रह गया ।
हरियाणा के हिस्से का पानी ले रहा है पंजाब व राजस्थान
हरियाणा का इस विषय पर मानना है कि पंजाब सरकार के इस अड़ियल रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के हिस्से के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं। यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती, प्रदेश की प्यास बुझती और लाखों किसानों को इसका लाभ मिलता। इस पानी के न मिलने से दक्षिणी-हरियाणा में भूजल स्तर भी काफी नीचे जा रहा है। एस.वाई.एल के न बनने से हरियाणा के किसान महंगे डीजल का प्रयोग करके और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ता है। पंजाब क्षेत्र में एस.वाई.एल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। इसकी वजह से हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की भी हानि उठानी पड़ती है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एस.वाई.एल नहर बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन कर पाता। 15 हजार प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19,500 करोड़ रुपए बनता है।
नहर निर्माण को लेकर पूरी तरह संजीदा हैं मुख्यमंत्री खट्टर
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जो पिछले लंबे समय नहर निर्माण को लेकर पूरी तरह से संजीदा नज़र आते हैं और समय समय इस दिशा में प्रभावी कदम भी उठाते रहे हैं, का कहना है कि सतलुज यमुना लिंक नहर हरियाणा की जीवन रेखा है और हरियाणा अपने इस हक को लेकर ही रहेगा । बैठक के बाद ट्वीट करते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने कहा कि ' एस. वाई. एल के मुद्दे को लेकर पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानने को भी तैयार नहीं है, इसके लिए हम फिर से उच्चतम न्यायालय जाएंगे, आगे जो भी सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला देगा, हम उसे मानने को तैयार हैं ।'
मुख्यमंत्री का कहना है कि हरियाणा के लिए एस.वाई.एल नहर का पानी अत्यंत आवश्यक है। अब इस मामले में एक टाइम लाइन तय होना जरूरी है, ताकि प्रदेश के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट फैसलों के बावजूद पंजाब ने एस.वाई.एल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश दिनांक 24.3.1976 के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एम.ए.एफ जल का आबंटन किया गया था। उन्होंने कहा कि एस.वाई.एल नहर का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एम.ए.एफ पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एस.वाई.एल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एम.ए.एफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है।