दलबदल से संबंधित कानून में आज भी बहुत सी खामियां मौजूद, इनमें बदलाव की गुंजाइश: रामनारायण यादव
punjabkesari.in Wednesday, Jun 30, 2021 - 08:35 AM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी) : पूर्व में देश के संविधान से संबंधित 4 पुस्तकें लिख चुके हरियाणा विधानसभा के पूर्व एडिशनल सेक्रेटरी राम नारायण यादव ने दलबदल मामले से सम्बंधित एक पुस्तक एंटी डिफेक्शन लॉ के नाम से लिखी है। बता दें कि रामनारायण यादव हरियाणा विधानसभा में एडिशनल सेक्रेटरी के पद पर तो कार्यरत रह ही चुके हैं, साथ ही वह पंजाब विधानसभा के पूर्व एडवाइजर की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन कर चुके हैं। विधानसभा के मामलों पर मजबूत पकड़ रखने वाले यादव एक बेहतरीन संविधान विशेषज्ञ हैं। उनकी एक पुस्तक का विमोचन आने वाले चार पांच माह में होने वाला है। इस एंटी डिफेक्शन लॉ पुस्तक के बारे में पंजाब केसरी ने यादव से विशेष बातचीत की। जिसमें उन्होंने बताया कि यह पुस्तक जनता के लिए और विधायिका के लिए बहुत उपयोगी पुस्तक हैं। हरियाणा विधानसभा में पहली बार चुनकर आए प्रतिनिधियों के लिए यह काफी ज्ञानवर्धक साबित होगी।
यादव ने बताया कि डॉ अबेडकर के बेहद नजदीकी रहे सुभाष कश्यप के साथ उनकी चर्चा होती रहती है और उनके दिशा निर्देश और उनके द्वारा मोटिवेशन किए जाने के बाद मैंने हिंदी पुस्तक लिखी। मेरी हरियाणा और पंजाब विधानसभा में जिम्मेदारियां रही। मैंने लोकसभा, नेशनल और इंटरनेशनल इंडियन पार्लियामेंट और फोरन पार्लियामेंट में ट्रेनिंग भी दी है। जहां देखा कि कई मुद्दे हमारे डेमोक्रेसी में डिवेलप कर रहे हैं। उसमें से डिफेक्शन ला भी ऐसा है। जो 1985 में बनने के बावजूद इसमें काफी ज्यादा कमियां हैं। कोरोना स्टार्ट होने के बाद मैंने खाली समय का प्रयोग इसे लिखने में किया। आमतौर पर देखने को मिलता है कि एडमिनिस्ट्रेशन और रजिस्ट्रेटर के बीच सुपीरियर होने का एक टकराव सा रहता है। मैंने इसमें यह बताने की कोशिश की है कि दोनों ही अपने काम में सुपीरियर हैं। इसलिए दोनों को आपस में एक दूसरे की रिस्पेक्ट रखनी होगी।
दलबदल कानून ब्रिटिश समय से चली आ रही एक पुरानी प्रथा है। आजादी से पहले से ही यह हमारी असेंबली में चला आ रहा है। सबसे ज्यादा 1967 में इस कानून के तहत दलबदल हुआ। जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिनिधियों ने दल बदले और कई सरकारें गिरी और नई बनी। तब लोकसभा ने 1967 में सभी दलों की एक कमेटी ऑन डिफेक्शन पर बनाई। उस कमेटी द्वारा रिपोर्ट 1969 में सौंपी गई। उसके बाद सबसे पहले लोकसभा में 1973 में एंटी डिफेक्शन लॉ आया। लेकिन वह पास नहीं हो पाया। 1979 में फिर से कानून लाया गया।
लेकिन 1985 में इस कोशिश को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने पास करके अमलीजामा पहना दिया। इसके बाद इस कानून में बहुत सी डिवेलपमेंट हुई। इस कानून में अच्छाई भी थी। सबसे पहले इसके बाद 1988 में मिजोरम के सांसद ने दलबदल किया उनको लोकसभा के स्पीकर ने डिसक्वालीफाई किया था। जिसे चैलेंज किया गया। इस प्रकार के कानून बहुत सी हाई कोर्ट में चैलेंज हुए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी केसों को अपने पास बुला लिया। 1985 में पैराग्राफ 7 जो 10 शेड्यूल में लागू हुआ था, अमेंडमेंट के द्वारा लागू हुआ था, उसमें यह चेंज हुआ कि स्पीकर या चेयरमैन के आदेशों को रिव्यू और चैलेंज किया जा सकता है।
यादव ने बताया कि मैंने इस कानून में हरियाणा का भी रेफरेंस दे दिया है। हरियाणा में भी यह प्रथा चलती आ रही है। पंजाब-बिहार- पश्चिम बंगाल-राजस्थान जैसे प्रदेशों में भी इस प्रथा का ज्यादा प्रचलन है। इन प्रदेशों में 210 दलबदल करने वाले सदस्यों में से 116 को मंत्री बनाया गया था। इन चीजों को देखते हुए यह दलबदल कानून आया था। लेकिन उसके बावजूद दल बदल की प्रथा को नहीं रोक पाए। बहुत ज्यादा दलबदल होने के कारण 1/3 का प्रोविजन में भी सन 2003 में बदलाव करना पड़ा। जो कि अब 2/3 की मेजॉरिटी है। जिसमें भी मेंबर इस्तीफा देकर भी चले जाते हैं। बहुत ज्यादा इस कानून में आज भी कमियां हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए दो चीजें हमारे सामने आई हैं। पहली नेशनल कमिशन टू रिव्यू दी वर्किंग कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया के पास पेंडिंग पड़ी हुई है। दूसरी अभी 2020 में मणिपुर के एक सांसद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि चेयरमैन और स्पीकर साहब के पास साइन करने के अथॉरिटी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जिनके बारे में वह फैसला करते हैं वह राजनीतिक रूप से उनके साथी होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का जज के पास इसकी पावर होनी चाहिए।
दूसरा इसकी इंप्लीमेंटेशन में भी कुछ खामियां होने के कारण इसमें बदलाव की गुंजाइश है। मैंने इस किताब में इसकी डिटेल से जानकारी देने की कोशिश की है। जैसे विप के बारे में अभी कोई स्टैंड क्लियर नहीं है। हालांकि यह एक महत्वपूर्ण चीज है। उसके बारे में है कि वे जब यह जारी हो गया तो वह लागू हो जाता है। जब डीफेक्ट हो गया तो भी वह लागू हो जाता है। डिफेक्शन का अगर केस चल जाता है और उसके बीच कोई रिजाइन दे देता है तो सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि रिजाइन देने से वह बच नहीं सकता।उसकी डिसक्वालीफिकेशन होगी। इसमें एक सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इसमें यह नहीं दे रखा कि स्पीकर इसे कितने दिनों में फाइनल करेंगे। इसमें इन्हें कोर्ट भी नहीं कह सकती। हरियाणा के कुलदीप बिश्नोई केस में तीन-चार माह में ही डिसाइड करने के लिए बोला गया था। लेकिन कोर्ट डायरेक्शन कर सकती है दबाव नहीं बना सकती। इस प्रकार के कुछ चीजों की इसमें सुधार की आवश्यकता है ।
यादव ने बताया कि 1988 से मैं डॉक्टर अंबेडकर के साथी रहे डॉक्टर सुभाष कश्यप के संपर्क में हूं और उन्होंने मुझे हिंदी में संविधान परिचय की किताब लिखने के लिए मोटिवेट किया। मैंने हाल ही में हिंदी में एक संविधान परिचय की किताब अगस्त क्रांति के नाम से लिखी है। ताकि हमारे उत्तर भारत के बच्चे इसे अच्छी तरह से समझ सके। कश्यप जी का मानना है कि अगर बच्चों को हिंदी में संविधान नहीं समझाया गया तो हमारी आने वाली नस्ल संविधान को ही भूल जाएगी। मैंने अगस्त क्रांति नाम इसलिए दिया क्योंकि हमें अगस्त में संविधान बनाने की ब्रिटिश सरकार ने ऑफर की गई थी। अगस्त में ही हमें आजादी मिली और 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 भी अगस्त में ही हटाई गई। इसके अलावा मैंने मैकेनिज्म ऑफ इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन 800 पन्नों की किताब लिखी। बहुत मेहनत की। फिर एक किताब कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया के बारे में लिखी। यह एंटी डिफेक्शन लॉ मेरी पांचवी किताब है और चार-पांच महीने में मेरी छोटी किताब भी लोगों के बीच में होगी।
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