हरियाणा: प्रदूषण स्तर बढऩे से 'जहरीली' हुई हवा, लॉकडाऊन में 60 तक पहुंचा AQI हुआ 142

punjabkesari.in Saturday, Jul 04, 2020 - 04:33 PM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा): हरियाणा में एक बार फिर से प्रदूषण का स्तर बढऩे के साथ ही हवा में जहर घुलना शुरू हो गया है। लॉकडाऊन के दौरान 23 मार्च से लेकर 15 अप्रैल तक की अवधि में हरियाणा में एयर क्वालिटी इंडैक्स में गिरावट दर्ज हुई और इसका लेवल 60 तक पहुंच गया था, जबकि अब अनलॉक शुरू होने के बाद वातावरण में प्रदूषण तेजी से बढ़ा है, जिससे एयर क्वालिटी इंडैक्स 142 तक पहुंच गया है। 

उल्लेखनीय है कि 101 से लेकर 200 तक क्वालिटी इंडैक्स खराब की श्रेणी में आता है। अब एक बार फिर से सड़कों पर वाहनों के दौडऩे, कारखानों में काम शुरू होने व भवन निर्माण के काम में तेजी आने से वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण दोनों बढ़ गए हैं। हरियाणा में इस समय फरीदाबाद में सर्वाधिक एयर क्वालिटी इंडैक्स 199, जबकि गुरुग्राम में 134 है। चिंताप्रद बात यह है कि हरियाणा में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से स्थिति अच्छी नहीं है और केवल 7 प्रतिशत भूमि पर पेड़-पौधे हैं।



गौरतलब है कि हरियाणा में वाहन, भवन निर्माण, कारखाने वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। बढ़ती जनसंख्या भी प्रदूषण के बड़े कारणों में से एक है। हरियाणा में हर साल लाखों नए वाहन सड़कों पर आ रहे हैं। हरियाणा सरकार के सांख्यिकी विभाग की 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में साल 1966 में 1168 कारखाने चालू अवस्था में थे और अब यह संख्या 12 हजार 931 हो गई है। फरीदाबाद में सर्वाधिक 2841 जबकि गुरुग्राम में 2639 छोटे-बड़े उद्योग हैं। लॉकडाऊन में कारखाने बंद थे। सड़कों पर वाहन भी इक्का-दुक्का थे। 

अनलॉक-टू शुरू होने के बाद एक बार फिर से हर रोज लाखों लीटर पेट्रोल-डीजल की खपत हो रही है। कारखानों की चिमनियों से फिर से धुआं निकल रहा है। यही वजह है कि एयर क्वालिटी इंडैक्स 142 तक पहुंच गया है। जबकि लॉकडाऊन के दौरान हवा शुद्ध हो गई थी। 1980 जैसा नजारा दिखने लगा था। आसमान नीला-नीला हो गया था। अब फिर से फिजा का रंग बदल गया है और प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। 



ये है एयर क्वालिटी इंडैक्स
0 से 50 तक एयर क्वालिटी इंडैक्स को अच्छा माना जाता है। 101 से 200 तक इंडैक्स खराब माना जाता है जबकि 201 से 300 तक यह अनहैल्थी होता है। 301 से 400 तक यह काफी खराब माना जाता है और 401 से 500 तक यह खतरनाक होता है। 101 से 200 यानी खराब एयर क्वालिटी इंडैक्स में सांस की तकलीफ के लोगों को दिक्कत रहती है जबकि 201 से 300 तक में छोटे बच्चों व बुजुर्गों को परेशानी आ सकती है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कोरोना संक्रमण के चलते एयर क्वालिटी इंडैक्स का बढऩा और भी खतरनाक साबित हो सकता है।

नदियां हुईं प्रदूषित 
गेहूं उत्पादन, प्रति व्यक्ति आय, दूध उत्पादन, मत्स्य पालन, औद्योगिक क्षेत्र में नए आयाम रच रहे हरियाणा में पर्यावरण के लिहाज से स्थिति बेहद ही चिंतनीय है। घग्घर एवं यमुना नदियां प्रदूषित हो गई हैं। पिछले 40 वर्ष में महज 3 फीसदी भूमि ही वन क्षेत्र के अंतर्गत कवर की जा सकी है। हर वर्ष साढ़े 4 करोड़ पौधे वन विभाग की ओर से रोपित किए जाते हैं और किसानों को नि:शुल्क दिए जाते हैं। 1988 में राष्ट्रीय वन नीति लागू की गई। उस समय राज्य में 3.52 फीसदी भूमि पर पेड़ लगे हुए थे। हरियाणा सरकार के सांख्यिकी विभाग की रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार हरियाणा में महज 1780 वर्ग किलोमीटर (7.02 प्रतिशत) भूमि पर पेड़ हैं। राज्य में उत्तर दिशा की तरफ शिवालिक का क्षेत्र जबकि दक्षिण की तरफ अरावली का क्षेत्र है, जहां पर अधिक संख्या में पेड़-पौधे हैं। 


इसके अलावा राज्य के शेष इलाकों में सड़कों व नहरी तटबंधों  के किनारे विभाग की ओर से पौधे लगाए जाते हैं। साथ ही हर वर्ष करीब 2 करोड़ से अधिक पौधे किसानों को नि:शुल्क बांटे जाते हैं। वन विभाग का दावा है कि पिछले 10 साल में विभाग की ओर से 21 हजार हैक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया। फिर भी यह क्या कारण है अभी तक पर्यावरण की दिशा में राज्य पिछड़ेपन का शिकार है? 



बढ़ता प्रदूषण है चिंताजनक: डा. सरवाल
ओजस अस्पताल पंचकूला के हृदय रोग एवं फेफड़े रोग विशेषज्ञ डा. वीरेंद्र सरवाल ने कहा कि वातावरण में बढ़ता प्रदूषण वैसे ही बड़ा चिंताजनक है और कोरोना संक्रमण के चलते तो इसकी घातकता और बढ़ जाती है। कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित होता है तो ये वायरस फेफड़ों को प्रभावित करता है और यदि प्रदूषण स्तर ज्यादा हो तो यह भी फेफड़ों को ही प्रभावित करता है। इससे आक्सीजन स्तर कम होता है और इससे इस वायरस की घातकता और बढ़ जाती है। ऐसे में लोगों को जरूरी काम के अलावा बाहर नहीं जाना चाहिए और जब भी निकलें तो बिना मास्क के बिल्कुल न जाएं। जहां तक वातावरण में प्रदूषण की बात है तो आम लोगों को भी वाहनों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए, ताकि वातावरण में प्रदूषण का स्तर कम किया जा सके।

लॉकडाऊन के नियम संशोधित तरीके से हों लागू: ढींडसा
राष्ट्रीय पर्यावरण अकादमी से अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण अवार्ड 2003 से सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. कुलदीप सिंह ढींडसा का कहना है कि लॉकडाऊन हटने के बाद वातावरण में प्रदूषण स्तर फिर से बढऩा काफी चिंताजनक है और कोविड-19 के चलते यह प्रदूषण हर व्यक्ति के लिए घातक है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि सबसे महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक संडे को जनता कफ्र्यू लगाया जाए। इस दिन आपात्तकालीन सेवाओं को छोड़कर कोई भी गैस, पैट्रोल या डीजल वाहन न चलें। जनता पैदल चले। अपने नजदीकी पार्क, नदी तट या बाग-बगीचों में प्रकृति के सानिध्य का आनंद ले। सभी दुकानें व रेहडिय़ां भी बंद हों। इस दौरान अक्षम लोग ई-रिक्शा का सहारा ले सकते हैं। डा. ढींडसा ने कहा कि लॉकडाऊन में लगी कुछ पाबंदियों को कुछ संशोधनों के साथ कानून का रूप दिया जाना चाहिए, ताकि वातावरण प्रदूषण का स्तर कम हो और लोग हैल्थी जीवन जी सकें।


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Shivam

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