प्राचीन हड़प्पा कालीन बालू टीले पर दिखे विरासत के अवशेष
punjabkesari.in Wednesday, Sep 07, 2022 - 09:31 AM (IST)

कलायत : भारत की सबसे प्राचीन हड़प्पा संस्कृति अब केवल इतिहास के पन्नों तक सिमटकर नहीं रहेगी। कलायत उप मंडल के आदर्श गांव बालू टीले पर इस सांस्कृतिक विरासत की मुंह बोलती तस्वीर दिखाई देगी। संस्कृति को जीवंत करने का बीड़ा राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो दल ने उठाया है। यह टीम पिछले दो दिन से बालू टीले के समुचित संरक्षण को लेकर गतिशील है। संगठन के पदाधिकारी विभागीय अधिकारियों का सहयोग करते हुए धरोहर को विकसित करने में अपना योगदान देने को तैयार हो गए हैं। संगठन पदाधिकारियों ने बताया कि कलायत क्षेत्र में जुलाई और अगस्त माह में हुई तेज बरसात के बाद हड़प्पा कालीन बालू टीले पर संस्कृति से जुड़े अवशेष दिखाई देने लगे हैं। इसमें मिट्टी की चूडिय़ां, पत्थर के बेडोल औजार, मिट्टी में दबी हुई दीवार व भ_ियां शामिल हैं।
सोमवार को भारत सरकार के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो दल जिला कैथलल चेयरमैन महेंद्र धानियां के साथ सीएलजी चेयरमैन रुलदू राम, हरियाणा नंबरदार एसोसिएशन प्रांतीय कोषाध्यक्ष संजय सिंगला, सुभाष वर्मा, एडवोकेट गौरव शर्मा, दलशेर सिंह, राजपाल सिंह, हवा सिंह, सुरेश लोधर, चांदी राम रंगा और मानव अधिकार एवं ब्यूरो के अन्य सदस्यों ने टीले का दौरा किया। उपरांत इसकी गहन समीक्षा करते हुए मंगलवार को धरोहर के समुचित संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन के माध्यम से भारतीय पुरातत्व विभाग से विरासत के समुचित संरक्षण को लेकर प्रभावी कदम उठाने के लिए पत्राचार करने का निर्णय लिया गया।
जंगली वनस्पति से घिरा है टीला
राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं अपराध नियंत्रण ब्यूरो पदाधिकारियों का कहना है कि हड़प्पा संस्कृति को वास्तव में नगर की संस्कृति की संज्ञा दी गई है। टीले से दशकों से विभिन्न प्रकार की प्राचीन वस्तुओं का मिलना निरंतर जारी है। पिछले काफी समय इस टीले का बड़ा संभाग जंगली वनस्पति से घिरा है। ऐसे में लोगों का टीले पर आना-जाना बहुत कम रहता है।
टीले की भूमि में खनन पर है प्रतिबंध
वर्ष 1976 में गांव बालू पर पुरातत्व विभाग की नजरें पड़ी थी। इसके उपरांत औपचारिक खुदाई का सिलसिला चला था। टीले पर मिले अवशेषों को कुरूक्षेत्र स्थित पुरातत्व विभाग के संरक्षण में एक संग्रहालय में रखा गया है। इस टीले को पुरातत्व विभाग ने सांस्कृतिक विरासत बताते हुए इस पर किसी भी प्रकार के निर्माण व खनन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।