पिता को खो चुकी रुचिका ने कहा- संक्रमण से सचेत व सावधान रहना बेहद आवश्यक

punjabkesari.in Monday, Dec 27, 2021 - 12:09 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी) : ''जब भी कमी खलती है आपकी, आपकी यादों से मुलाकातें कर लेती हूं। अब आपसे मिलना मुमकिन कहां- इसलिए आपकी तस्वीरों से बातें कर लेती हूं''। यह दर्द सिरसा की एक बेटी जिसने कोरोना की पहली लहर के दौरान हुए एक्सीडेंट में अपने पिता को खो दिया था। अब ओमीक्रोन वेरिएंट की दस्तक से यह बेटी समाज को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रही है कि सचेत और सावधान रहना कितना आवश्यक है। जरा सी चूक परिवार को असहनीय पीड़ा दे सकती है। परिवार पर दुखों का पहाड़ फूट सकता है।

दरअसल सिरसा की रुचिका मेहता के परिवार ने दर्द और इस परेशानी को बड़ी नजदीक से देखा है। जब कोरोना की पहली लहर के दौरान रुचिका मेहता के पिता डॉ वीरेंद्र मेहता का 4 मार्च को उस समय एक्सीडेंट हो गया जब वह किसी निजी काम से स्कूटी पर जा रहे थे। रुचिका के पिता सिरसा जिले के रानियां में ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे और इस सड़क हादसे के बाद परिवार की सारी दुनिया सी उजड़ गई। इस दुर्घटना के बाद रुचिका के पिता 35-40 तक आईसीयू में वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत से लड़ते-लड़ते आखिरकार इस जीवन को छोड़कर चले गए।

रुचिका ने समाज से दरखास्त की है कि सरकार द्वारा संक्रमण को लेकर दी गई गाइडलाइंस की पालना पूरी तरह से करें। मास्क- सैनिटाइजर का अवश्य इस्तेमाल करें और खास तौर पर वैक्सीन जरूर से जरूर लगवाएं। यह केवल व्यक्ति विशेष की ही नहीं परिवार की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। क्योंकि यह दुख केवल और केवल वही समझ सकता है जिस पर यह बीता हो। जो व्यक्ति इस बुरे दौर से गुजरा होता है। रुचिका मेहता ने कहा कि ओमक्रोन वैरीअंट बेहद घातक संक्रमण है और पुराने समय की पहली व दूसरी लहर ने लोगों के हंसते- खेलते घर उजाड़ दिए। साथ ऐसा ना हो इसलिए अपना वह अपने परिवार की बेहतरी के लिए पूरी सावधानियां बरतें।

मेहता उस समय को याद करती हुई बेहद भावुक हो गई और कहने लगी कि 4 मार्च को जब पिता का एक्सीडेंट हुआ तो उसी दौरान ही कोविड को लेकर लॉकडाउन लगा दिया गया था और किसी को इन हालातों की पूरी जानकारी नहीं थी। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कोरोना आखिर है। हादसा इतना खतरनाक था कि उनके पिता वेंटिलेटर पर 35- 40 दिन तक जिंदगी और मौत से जूझते रहे और उस दौरान किसी को कहीं आने जाने की परमिशन नहीं थी। पूरा देश पूरी तरह से बंद था। आईसीयू वाले मरीज के पास भी एक से ज्यादा परिवार के सदस्य को बैठने की भी अनुमति नहीं थी। जिस कारण से और अधिक मुश्किलें बढ़ गई।

दवाइयों की सप्लाई भी ना चलने के कारण मेडिकल हॉल्स पर बहुत सी दवाइयां नहीं मिल पा रही थी। एक-एक दवाई के लिए शहर के कई-कई मेडिकल स्टोर पर धक्के खाने पड़ रहे थे और जगह जगह पर पुलिस की नाकेबंदी होने के कारण कहीं भी जाने के लिए कई-कई जगह जवाबदेही देनी पड़ रही थी। अपनी समस्या समझाने में काफी वक्त खर्च हो रहा था और पीछे मरीज की चिंता से पूरा परिवार बेहद सदमे में था। ऐसे हादसे के वक्त जहां आईसीयू वाले मरीज के साथ कम से कम दो-तीन सदस्यों की आवश्यकता रहती है। दवाई लेने जाने वाले व्यक्ति को पीछे मरीज की चिंता खाए जाती थी। ऐसे में परिवार बेहद बुरे दौर से गुजर रहा था।

रुचिका एक स्काॅलर हैं और मार्केटिंग एंड मैनेजमेंट में पीएचडी कर रही हैं। उनके पिता भी बहुत पढ़े-लिखे शख्सों में शुमार थे। अपने अंतिम दिनों में वे बतौर ब्लाॅक ऐजुकेशन आफिसर रानियां, जिला सिरसा में तैनात थे।  रुचिका मेहता ने इस समय की पूरी व्याख्या करते हुए एक किताब  ’द अनकिस्ड लाइज़’ लिखी है। बकौल रुचिका ये किताब उन्होंने इसलिए लिखी ताकि वे अपने पिता डाॅ विरेंद्र मेहता को हमेशा अपने पास महसूस कर सकें। 

पिता जैसा कोई नहीं संसार में
पिता के दुलार और प्यार का वर्णन करते हुए इस पुत्री ने अपने पिता से बचपन से जुड़ी यादों से लेकर आखिरी पल तक की यादों का वर्णन इस किताब में किया है। रुचिका कहती हैं कि एक बेटी की जिंदगी में पिता का होना भगवान के होने जैसा है और यदि इस तरह से पिता दुनिया से रुख्सत हो जाते हैं तो उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता।

कुछ बेगाने इस बुरे वक्त में अपनों से भी ज्यादा अपने हो गए
रुचिका ने कहा कि समय इतना बुरा था कि उसको बातों से बयां नहीं किया जा सकता और बहुत से अपने ऐसे थे जिन पर बेहद नाज था बेहद उम्मीदें थी लेकिन वह मुंह मोड़ गए, लेकिन बहुत से ऐसे लोग जो जिन्होंने इतना साथ निभाया कि उनका एहसान उतार पाना संभव नहीं है। मुश्किल के दौर में कुछ अपनों ने मुंह फेरा और कैसे कुछ बेगाने लोग अपनों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए।


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Content Writer

Manisha rana

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