शैलजा और सुरजेवाला ने साधा निशाना, शराब घोटाले की आंच पहुंची मुख्यमंत्री की ड्योढ़ी तक

punjabkesari.in Monday, Aug 10, 2020 - 09:04 AM (IST)

चंडीगढ़ (बंसल) : हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कु. शैलजा और राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुर्जेवाला ने शराब घोटाले को लेकर प्रदेश सरकार पर फिर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि लॉकडाऊन दौरान प्रदेश में खुलेआम शराब घोटाले और चोर दरवाजे से सैंकड़ों-हजारों करोड़ की शराब बिक्री व तस्करी की परतें आए दिन खुल रही हैं। साफ है कि शराब माफिया के तार सीधे-सीधे उच्च पदों पर बैठे राजनीतिज्ञों और आला अधिकारियों से जुड़े हैं।

नेताओं ने कहा कि भाजपा-जजपा सरकार में हड़कंप मचा है और प्रदेश के इतिहास में पहली बार परस्पर इल्जामात की राजनीति का खुला खेल चल रहा है। गृह मंत्री अनिल विज, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के एक्साइज व टैक्टेशन विभाग को दोषी ठहराते हैं। उपमुख्यमंत्री गृहमंत्री के विभाग पर जिम्मेदारी और  दोष मढ़ देते हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जांच के लिए स्पैशल इंक्वायरी टीम (एस.ई.टी.) का गठन किया था और 30 जुलाई को रिपोर्ट सामने आई है। कमाल की बात है कि उपमुख्यमंत्री रिपोर्ट को ही सिरे से खारिज कर देते हैं। जवाब में मुख्यमंत्री मनोहर लाल उनकी बात को ही सिरे से नकार देते हैं।

शैलजा और सुर्जेवाला ने कहा कि शराब माफिया के घालमेल में बड़े पदों पर बैठे लोग इस प्रकार के इल्जामात की राजनीति कर रहे हैं। प्रदेश में ‘जूतों में दाल’ बंट रही है। इस सारे विवाद में शराब माफिया व शराब तस्करों की पौ बारह है तथा दोषी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्होंने कहा कि 11 मई को एस.ई.टी. के गठन से अब तक के घटनाक्रम में सीधे-सीधे जिम्मेदारी व जवाबदेही की आंच मुख्यमंत्री मनोहर लाल की ड्योढ़ी तक पहुंचा दी है। अब एस.ई.टी. के गठन को लेकर गृह मंत्री और मुख्यमंत्री की फाइल नोटिंग सार्वजनिक हो गई है। 

सोनीपत शराब गोदाम से तस्करी का खुला खेल उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री ने एस.ई.टी. की जांच को सिरे से खारिज क्यों कर दिया? क्या जांच और घोटाले के खुलासे से उच्च पदों पर बैठे लोगों के नाम उजागर होने का खतरा था?

क्या कारण है कि मुख्यमंत्री और गृह मंत्री ने एस.आई.टी. को खारिज कर एस.ई.टी. का गठन किया? क्या ये सही नहीं कि एस.ई.टी. को क्रिमिनल प्रोसिजर कोड, 1973 कीधारा 2 (द्ध) व 2 (0) के तहत कागजात जब्त करने, रेड, शराब ठेकों व गोदामों के अलावा फैक्ट्रियों की जांच, एक्साइज विभाग का रिकॉर्ड जब्त करने और दोषियों की गिरफ्तारी का अधिकार ही नहीं दिया गया?

क्या गृह सचिव और गृह मंत्री ने 7 मई को एस.ई.टी. का गठन कर शराब के ठेकों और गोदामों (एल-1) व (एल-13) के स्टॉक की तफ्तीश कर शराब की शॉर्टेज, तस्करी और नाजायज बिक्री की जांच का अधिकार देने की सिफारिश की थी? फिर, मुख्यमंत्री ने एस.ई.टी. को अधिकार देने से इनकार क्यों किया? क्या मुख्यमंत्री के इनकार से तस्करों और नाजायज शराब बेचने वालों को चिन्हित करने में रोड़ा नहीं अटकाया गया? 

क्या गृह सचिव और गृह मंत्री ने शराब ठेकों, गोदामों और पुलिस मालखानों से चोरी शराब बारे दर्ज एफ.आई.आर. और कार्रवाई की सूचना एकत्र करने/कार्रवाई बारे सिफारिश मुख्यमंत्री को नहीं की? फिर मुख्यमंत्री ने सारी जानकारी की अवधि को मात्र 25 दिन में ही सीमित कर (15 मार्च से 10 अप्रैल) एस.ई.टी. के हाथ क्यों बांध दिए? इसका सीधा फायदा किसको मिला?   

क्या गृह सचिव और गृह मंत्री द्वारा 2019-20 के बीच नाजायज शराब पकड़े जाने, ट्रांसपोटेशन और जब्त शराब की स्टोरेज बारे कार्रवाई की पूरी रिपोर्ट एस.ई.टी. द्वारा दिए जाने की सिफारिश की थी? फिर मुख्यमंत्री ने जांच को एस.ई.टी. को न देकर अलग से फाइल मंगवाने बारे क्यों लिखा? क्या रहस्य था और कौन से नाम थे जिनकी जांच मुख्यमंत्री एस.ई.टी. से नहीं करवाना चाहते थे?  

भाजपा-जजपा ने एक-दूसरे में विश्वास खो दिया
शैलजा और सुर्जेवाला ने कहा कि एस.ई.टी. की रिपोर्ट में सफेदपोशों और अफसरशाही की शराब ठेकेदारों व माफिया से संलिप्तता का षड्यंत्र खुले तौर पर सामने आया है। उपमुख्यमंत्री ने रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और मुख्यमंत्री ने उपमुख्यमंत्री की बात से किनारा कर उनके दावे को खारिज कर दिया। ऐसे में जब मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री अलग-अलग राजनीतिक दलों से हैं और गठबंधन सरकार चलाते हैं, तो एक-दूसरे पर अविश्वास की स्थिति स्पष्ट है। साफ है कि दोनों दलों ने एक-दूसरे में विश्वास खो दिया है। सवाल यह है कि ऐसे में क्या सरकार को सत्ता में बने रहने का अधिकार रह गया है? मुख्यमंत्री मनोहर लाल और दुष्यंत चौटाला जवाब जनता को दें। 


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Edited By

Manisha rana

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