हरियाणा सहित 6 राज्यों में स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून कहीं भी सिरे नहीं चढ़ पाया
punjabkesari.in Saturday, Nov 18, 2023 - 08:13 PM (IST)

चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी) : हरियाणा सहित 6 राज्य ऐसे हैं जिनमें स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून बनाया व लागू किया मगर हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट तक मामले पहुंचने से किसी भी राज्य में यह सिरे नही चढ़ पाया। अतीत में आंध्र प्रदेश, कनार्टक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और झारखंड की सरकारों ने भी उद्योगों में स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून बनाया था, लेकिन अदालतों में जाने से कोई भी राज्य इसे पूरी तरह लागू नहीं कर पाया। हरियाणा में निजी क्षेत्र में 30 हजार रुपये तक की नौकरियाें में स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में नहीं टिक पाने के पीछे समानता का अधिकार रहा है।
हरियाणा में भजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार में जेजेपी के चुनावी घोषणा पत्र के वायदे को अमली जामा पहनाने के लिए यह कानून बनाया गया था। कानून का उल्लंघन करने पर नियोक्ता पर 25 हजार रुपये से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान भी कर दिया गया। राजस्थान में भी जेजेपी हरियाणा की तर्ज पर वहां के प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा कर रही है।
निजी क्षेत्र में आरक्षण को लेकर संबंधित राज्यों के हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में पेंच फंसता रहा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा ने अपने एक फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि प्राइवेट कंपनियां संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य की परिभाषा में नहीं आतीं। उन पर मौलिक अधिकार लागू करने का दबाव नहीं डाला जा सकता। संविधान के मौलिक सिद्धांतों में रोजगार उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन इसमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अनुच्छेद 14 में मिला बराबरी का अधिकार तो इससे प्रभावित नहीं होता।
कई सीनियर वकील भी मानते हैं कि संविधान में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, कहीं भी बसने और रोजगार की आजादी का मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुसार निजी कंपनियां राज्य की परिधि से भी बाहर हैं। आरक्षण कानून को हाई कोर्ट में इन कसौटियों से गुजरना पड़ा।
वर्ष 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदीप जैन मामले में निवास स्थान के आधार पर आरक्षण पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि निवास के आधार पर नौकरी में आरक्षण की नीतियां असंवैधानिक हैं। इसके बाद 1995 में सुनंदा रेड्डी केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदीप जैन मामले में की गई टिप्पणी पर मुहर लगाते हुए आंध्र प्रदेश सरकार की तेलुगु माध्यम से पढ़ने वालों को पांच प्रतिशत अतिरिक्त लाभ देने के नियम को रद कर दिया था। निवास स्थान का मामला 2002 में भी आया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान की सरकारी शिक्षक भर्ती रद की थी। 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भर्ती अधिसूचना रद की थी जिसमें उत्तर प्रदेश की मूल निवासी महिलाओं को प्राथमिकता की बात कही गई थी।
उद्योगपतियों के सुझावों पर कानून में कुछ बदलाव भी किए गए। हरियाणा विधानसभा में पहले 50 हजार रुपये तक की नौकरियों में 75 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। उद्योग जगत की आपत्तियों के बाद अधिकतम वेतन की सीमा को 20 हजार रुपये घटा दिया गया। आरक्षण में उन युवाओं को भी शामिल किया गया जो प्रदेश में पांच वर्ष से रह रहे हैं। इसके बावजूद उद्योगपतियों को नया नियम रास नहीं आया। उनका तर्क था कि नया कानून हरियाणा को गैर-प्रतिस्पर्धी और व्यापार के लिए अनाकर्षक बना देगा। इससे स्थानीय लोगों को नौकरी मिलने की बजाय छिनने लगेंगी। प्राइवेट कंपनियों का तर्क है कि उन्हें उद्योग की जरूरत के मुताबिक कुशल श्रमिक चाहिए, चाहे वह कहीं से हो।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी मानते रहें हैं कि आरक्षण नियमों से नए उद्योग प्रभावित नहीं होंगे। 30 हजार रुपये से अधिक के वेतन वाली नौकरियों के मामले में कंपनियों पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया जाएगा। औद्योगिक संघों, उद्यमियों और अन्य हितधारकों के साथ कई दौर की बैठकों के बाद उनके सुझावों के आधार पर यह कानून लागू किया गया है। इसलिए औद्योगिक क्षेत्र के हित प्रभावित होने का सवाल ही नहीं उठता।
निजी क्षेत्र में राज्य के मूल निवासियों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने वाले हरियाणा के कानून के खिलाफ याचिकाओं पर हाई कोर्ट के विद्धवान जस्टिस जी एस संधावालिया व जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन यह आदेश जारी किया था।
क्या था पूरा मामला
6 नवंबर, 2021 को राज्य के श्रम विभाग द्वारा इस संबंध में एक अधिसूचना भी जारी की गई थी। कानून में प्रावधान है कि नए कारखानों/उद्योगों या पहले से स्थापित उद्योगों/संस्थानों में 75 प्रतिशत नौकरियां हरियाणा के मूल निवासियों को दी जाएंगी। यह केवल हरियाणा राज्य में स्थित विभिन्न निजी तौर पर कंपनियों, सोसायटी, ट्रस्ट, सीमित देयता भागीदारी फर्म, साझेदारी फर्म आदि में 10 या अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने वाले 30,000 रुपये प्रति माह से कम वेतन वाली नौकरियों पर लागू है।
हालांकि, 3 फरवरी, 2022 को हाई कोर्ट ने राज्य में कानून के लागू करने पर पर रोक लगा दी। इसके बाद हरियाणा सरकार ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसने 17 फरवरी, 2022 को हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और हाई कोर्ट को इस मुद्दे पर चार सप्ताह में फैसला करने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इस मामले पर 16 मार्च 2022 तक हाई कोर्ट ने फैसला लेना था।
मामले में फरीदाबाद व गुरुग्राम के औद्योगिक संगठनों ने याचिका दायर कर हरियाणा में 15 जनवरी 2022 से लागू रोजगार गारंटी कानून पर रोक लगाने की मांग कर रखी है। रोजगार गारंटी कानून के तहत प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों, खासकर उद्योगों में हरियाणा के युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रविधान है।
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