हरियाणा सिविल सेवा के अफसरों में नाराजगी की चर्चा, जानें क्या है वजह

punjabkesari.in Monday, Nov 24, 2025 - 07:44 PM (IST)

चंडीगढ़ (चंद्रशेखर धरणी) : प्रदेश सरकार द्वारा एचसीएस (हरियाणा सिविल सेवा) में पदोन्नति को लेकर संशोधित मानदंडों को लेकर हरियाणा सिविल सेवा के अफसरों में नाराजगी व्याप्त हो गई है। इन पर विचार मंथन के बाद में अंदरखाने इसका विरोध शुरु हो गया है। कुछ अफसरों इस नाराजगी को लेकर (सीएमओ) मुख्यमंत्री ऑफिस आला अफसरों को अवगत भी करा दिया गया है। उसके बाद भी इन्हें अफसरों पर थोपा गया, तो इस तरह के बदलाव को लेकर हाई कोर्ट जाने की तैयारी में हैं।  

हरियाणा सिविल सेवा (एक्जीक्यूटिव ब्रांच) में रजिस्टर (A-1) और रजिस्टर-C के तहत पदोन्नति के लिए शैक्षणिक अंकों के संशोधित मानदंडों को लेकर सवाल उठाते हुए इस पर राज्य के अधिकारी विरोध कर रहे हैं। रजिस्टर A-1 के तहत तहसीलदार, जबकि रजिस्टर-C में बीडीपीओ और डीडीपीओ पदोन्नति के पात्र होते हैं। खास बात यह है कि  सिविल सेवा अफसरों की अहम और मुख्य आपत्ति नियम 14 के अंतर्गत शैक्षणिक उपलब्धि के लिए निर्धारित (13) अंकों के आवंटन को लेकर है। वर्ष 2019 की अधिसूचना के अनुसार, सेवा में आने के बाद प्राप्त की गई उच्च शैक्षणिक डिग्री को पूरे 13 अंक दिए जाते हैं। जबकि सेवा जॉइन करने से पहले प्राप्त समान डिग्री को केवल 50% यानी आधे अंक ही मिलते हैं।

आपत्ति करने वाले सिविल सेवा अफसरों का कहना है कि यह अंतर समान पात्र अधिकारियों के बीच बिना वजह का बंटवारा और गुटबाजी पैदा करने के अलावा कुछ भी नहीं हैं।  कुछ अफसरों ने विस्तार पर इस बारे में चिंतन मंथन किया है।  नाम नहीं छापने की शर्त पर कुछ का कहना है कि  उनके पास नियुक्ति के समय ही मास्टर डिग्री थी और कई सहकर्मियों ने वही डिग्री सेवा के दौरान प्राप्त की। “डिग्री तो वही है, योग्यता भी वही है। फिर सेवा में आने से पहले ली डिग्री का मूल्य आधा क्यों है ?”

अधिकारी ने सवाल उठाते हुए पूछ लिया है कि इस तरह का मनमाना फैसला कैसे लिया जा सकता है। अधिकारियों द्वारा सरकार को भेजे गए अपने एक पत्र में तर्क दिया गया है कि यह वर्गीकरण ना तो प्रशासनिक दक्षता से जुड़ा है और ना ही योग्यता को दर्शाता है—जो कि नियम 14 के मूल उद्देश्य हैं। एक अन्य अधिकारी का  कहना है कि —“डिग्री की शैक्षणिक गुणवत्ता उसके समय पर निर्भर नहीं करती। पहले ली योग्यता का मूल्य मनमाने ढंग से घटाया नहीं जा सकता।” प्रतिनिधित्व में कई सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का भी हवाला दिया है, जिनमें कहा गया है कि योग्यता अर्जित करने का समय पदोन्नति में उसके मूल्यांकन का आधार नहीं हो सकता। 

इस बारे में लीगल राय  ले रहे अफसरों को कईं अदालतों के फैसले भी संदर्भ के लिए बताए गए हैं। तमिलनाडु मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले का उल्लेख करते हुए अफसरों ने कहा कि उच्च योग्यता को केवल इसलिए कमतर नहीं आंका जा सकता क्योंकि वह सेवा पूर्व प्राप्त की गई थी; यह भेदभाव असंवैधानिक है। अफसरों ने बताया कि वर्ष 2017 के निर्देशों में प्री-सर्विस और इन-सर्विस योग्यता अंकों के बीच बहुत कम अंतर था, जबकि 2019 के संशोधन ने यह अंतर और बढ़ा दिया है। इससे वे अधिकारी नुकसान में आ गए हैं, जिन्होंने सेवा में आने से पहले मजबूत शैक्षणिक योग्यता हासिल की थी।

(पंजाब केसरी हरियाणा की खबरें अब क्लिक में Whatsapp एवं Telegram पर जुड़ने के लिए लाल रंग पर क्लिक करें)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Yakeen Kumar

Related News

static