International Women''s Day: हरियाणा में 57 वर्षों में नारी शक्ति ने सियासत में हासिल किया विशेष ‘मुकाम’, 6 महिलाएं बन चुकी है सांसद

punjabkesari.in Friday, Mar 08, 2024 - 10:58 AM (IST)

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा/नवदीप सेतिया) : हरियाणा के अब तक के 57 वर्षों के सियासी सफर पर नजर डालें तो अनेक महिलाओं ने अपने बलबूते पर यहां राजनीति में गहरा प्रभाव छोड़ा है। शन्नो देवी ने अपने कौशल के बलबूते पर सियासत में एक खास मुकाम हासिल किया। वे हरियाणा विधानसभा की पहली एवं इकलौती महिला अध्यक्ष रहीं। इसी तरह से कुमारी सैलजा सबसे अधिक 4 बार लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। वर्तमान में सिरसा से सुनीता दुग्गल सांसद हैं तो हरियाणा सरकार में कमलेश ढांडा इकलौती महिला नेत्री हैं। प्रसन्नी देवी ने विधानसभा में जीत का सिक्सर लगाया। पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह की बहन सुमित्रा देवी एक बार बिना चुनाव लड़े रेवाड़ी से विधायक बन गईं तो बड़े घरानों से चौधरी भजनलाल की पत्नी जसमां देवी, चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी, चौधरी देवीलाल की पौत्रवधु नैना चौटाला, कुलदीप बिश्रोई की पत्नी रेणूका बिश्रोई, ओमप्रकाश जिंदल की पत्नी सावित्री जिंदल, बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भी विधायक बनने में सफल रहीं। 

गौरतलब है कि चुनाव-दर-चुनाव विभिन्न राजनीतिक दलों से महिलाएं विधायक बनती रही हैं। 1967 के चुनाव में 8 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और इनमें से 4 विधायक बनने में सफल रहीं। 1968 में 12 महिला उम्मीदवारों में से 7, 1972 में 13 में से 4, 1977 में 20 में से 4, 1982 में 27 में से 7, 1987 में 35 में से 5, 1991 में 41 में से 6, 1996 में 17 में से 4, साल 2000 में 49 में से 4, 2005 में 60 में से 11, 2009 में 69 में से 9 और 2014 में सर्वाधिक 13 महिलाएं विधानसभा में पहुंचीं। पिछले चुनाव में 90 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और 9 विधायक निर्वाचित हुईं।


57 वर्षों में 3 महिलाएं बनीं आजाद विधायक

हरियाणा के प्रत्येक चुनाव में आजाद उम्मीदवार विधायक बनते रहे हैं, लेकिन अब तक हरियाणा में हुए 13 चुनाव में तीन ही ऐसे मौके आए जब आजाद विधायक के रूप में महिलाएं विधानसभा में पहुंचने में सफल रहीं। 1982 में बल्लबगढ़ सीट से शारदा रानी आजाद विधायक चुनी गईं। इससे पहले शारदा इसी सीट से कई बार कांग्रेस की विधायक चुनी जा चुकी थीं। इसी तरह से 1987 में चौधरी देवीलाल की जबरदस्त लहर के बीच 27 साल की एक युवती मेधावी कीर्ति झज्जर सीट से निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल हुईं। 2005 में बावल सीट से शकुंतला भागवडिय़ा आजाद विधायक चुनी गईं। 1967 में 16, 1968 में 6, 1972 में 11, 1977 में 7 आजाद विधायक चुने गए हैं, मगर इन चुनावों में कभी कोई महिला आजाद विधायक नहीं चुनी गईं। 1982 में पहली बार बल्लबगढ़ सीट से शारदा रानी आजाद विधायक चुनी गईं। शारदा रानी के बाद हरियाणा के अब तक के राजनीतिक इतिहास में मेधावी कीर्ति ही दूसरी ऐसी महिला नेत्री रही जिन्होंने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता था। मेधावी कीर्ति प्रसिद्ध राजनेता बाबू जगजीवन राम की पौती थीं। 1987 के चुनाव में लोकदल और भाजपा की जबरदस्त लहर थी। लोकदल की लहर के बीच ही मेधावी कीर्ति ने लोकदल के उम्मीदवार मांगेराम को 13 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया। हालांकि इसके बाद हरियाणा की सियासत से मेधावी ने किनारा सा कर लिया। इसी प्रकार से शकुंतला भागवाडिय़ा ने भी राजनीति में खास मुकाम हासिल किया। वे मंत्री भी रही और 2005 में बावल विधानसभा सीट से आजाद विधायक चुनी गईं।


जब चंद्रावती ने चौ. बंसीलाल जैसे बड़े नेता को हराया


हरियाणा के अब तक के लगभग 57 साल के सियासी सफर पर नजर डालें तो 6 महिलाओं को ही देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में पहुंचने का अवसर मिला है। साल 1977 में चंद्रावती पहली महिला नेत्री थी जो लोकसभा सदस्य चुनीं गईं। चंद्रावती ने भिवानी लोकसभा सीट से चौधरी बंसीलाल को हराया था। चंद्रावती ही इकलौती ऐसी महिला रही थीं जो हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनीं। इसके अलावा चंद्रावती पांडेचेरी की उपराज्यपाल भी रहीं। इसके अलावा डा. कमला वर्मा भारतीय जनता पार्टी की अध्यक्ष रहीं। इसी प्रकार से कुमारी सैलजा चार बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं तो वे हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं और वे वर्तमान में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व उत्तराखंड की प्रभारी हैं। इनैलो से कैलाशो सैनी दो बार साल 1998 और 1999 में कुरुक्षेत्र से सांसद चुनी गईं, तो भाजपा से डा. सुधा यादव एक बार और कांग्रेस की श्रुति चौधरी 2009 में भिवानी से सांसद रह चुकी हैं। इसी प्रकार से वर्तमान में सुनीता दुग्गल सिरसा से सांसद हैं। 


25 साल की उम्र में सबसे युवा मंत्री बन गई थीं सुषमा स्वराज


दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने के अलावा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुकी स्व. सुषमा स्वराज ने अपने सियासी कॅरियर का आगाज हरियाणा से ही किया। 1977 में वे जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में अंबाला कैंट से विधायक चुनी गईं और बाद में चौधरी देवीलाल की सरकार में मंत्री रही। 25 साल की आयु में मंत्री बनने का रिकॉर्ड आज भी उनके नाम है। इसी तरह से सुषमा स्वराज 1987 से लेकर 1990 तक भी हरियाणा की कैबिनेट मंत्री रहीं। इसके बाद वे केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गई और 1996 में दक्षिण दिल्ली से सांसद चुनी गई। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहीं। 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और 2000 से लेकर 2003, 2003 से 2004 और 2014 से 2019 तक केंद्रीय मंत्री रहीं। इसी तरह से शन्नो देवी के नाम राजनीति में कई रिकॉर्ड हैं। आजादी से पहले वे मुल्तान से 1940 और 1946 में विधायक चुनीं गईं। साल 1951 और 1957 में पंजाब के अमृतसर से और साल 1962 में जगाधरी से विधायक चुनी गईं। शन्नो देवी संयुक्त पंजाब के समय पंजाब विधानसभा की डिप्टी स्पीकर रहीं और हरियाणा बनने के बाद वे हरियाणा विधानसभा की पहली महिला स्पीकर बनीं। 
 


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Content Writer

Manisha rana

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