...जब लंगर तैयार करने के लिए सरस्वती नदी का पानी बन गया था घी

punjabkesari.in Wednesday, Mar 23, 2016 - 01:44 PM (IST)

कैथल (रमन गुप्ता): कैथल के गांव नोच में पिछले दिनों विख्यात सरस्वती नदी तट पर बने महाभारत कालीन कुंज तीर्थ पर विशाल मेले और भंडारे का आयोजन  किया गया। हर वर्ष यहां भारी मेला लगता है और दूर-दूर से लोग इसमें शामिल होने आते हैं। सरस्वती नदी किनारे बने इस महाभारत कालीन तीर्थ का विशेष महत्व है। मंदिर के महंत चरण दास ने बताया कि हर वर्ष यहां पर बाबा गुलाब दास की समाधि पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता जिसमें आसपास के गांव के लोग सेवा करते हैं।

बानपुरा में स्थित इस तीर्थ का वर्णनं महाभारत और वामनपुराण दोनों में है। दोनों ही पुराणों में इस तीर्थ को सरसवती नदी के तट पर बताया गया है। इस तीर्थ का बहुत महत्व है। इस तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को अग्निस्थोम यज्ञ के समान फल मिलता है। वामनपुराण के काल में इस तीर्थ का महत्व बिलकुल वैसा ही था जैसा महाभारत काल में था। एक दन्त कथा के अनुसार एक बार बाबा गुलाबदास ने यहां पर भंडारे का आयोजन किया।

भंडारे के दौरान घी की कमी पड़ गई तब बाबा ने आदेश दिया कि मां सरस्वती से घी उधार ले लो और बाद में वापिस कर देंगे। तब सेवादारों ने सरस्वती नदी से जैसे ही जल भरकर अन्दर रखा थोड़ी देर बाद उस पानी का घी बन गया उसके कुछ दिन बाद सेवादारों ने घी वापिस करने के लिए जैसे ही नदी में घी डाला उसका पानी बन गया।
 

बाबा चरणदास ने बताया की यह तीर्थ कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के अधीन है और कुछ दिन पहले ही यहां पर सरस्वती नदी की भूमि की निशानदेही भी की गई थी। सरकार भी सरस्वती नदी के जीर्णोद्धार के लिए काफी प्रयासरत है। पिछले ही दिनों सरस्वती विकास बोर्ड का गठन भी किया गया है आधिबदरी ( यमुनानगर ) के पास सरस्वती नदी की खुदाई का कार्य भी चल रहा है। हम सरकार से यही प्रार्थना करते हैं कि यहां आने-जाने का कोई रास्ता नहीं है। सरकार यहां पर सड़क बनवाए ताकि लोगों को इस तीर्थ पर आने में कोई दिक्कत न हो।


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