सुखाचार का अधिकार जानना जरूरी - डॉ सर्वम रितम खरे
punjabkesari.in Thursday, Dec 09, 2021 - 06:16 PM (IST)

गुडगांव ब्यूरो: सुखाचार् या सुविधा का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो एक व्यक्ति का किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति पर होता है। तकनीकी रूप से कहें एक संपत्ति का दूसरी संपत्ति पर होता है जैसे अपनी संपत्ति पर दूसरी संपत्ति पर से आने जाने का मार्ग अधिकार, इसी सार्वजनिक उपयोगिता के उपभोग का अधिकार तथा जीवन आवश्यकताओं के उपभोग का अधिकार इन अधिकारों की आधारभूत सिद्धांत यह है कि हर व्यक्ति को अपनी संपत्ति से पूर्ण लाभ एवं पूर्ण उपयोगिता प्राप्त करने का अधिकार है तथा अन्य संपत्तियां पारस्परिक रूप से एक दूसरे के इस अधिकार को सुनिश्चित करने हेतु कर्तव्य बद्ध है ।
भारत में सूखाचार का अधिकार भारतीय सुखाचार अधिनियम, १८८२ के आधीन संचालित होता है। परिभाषा: भारतीय सुखाचार अधिनियम की धारा 4 सुखाचार को परिभाषित करती है जिसके अनुसार सुखाचार एक ऐसा अधिकार है जो किसी भूमि स्वामी या किसी संपत्ति के स्वामी को अपनी संपत्ति के फायदाप्रद उपयोग के लिए किसी अन्य संपत्ति या उसके संबंध में जो उसकी अपनी नहीं है कोई बात करने या किए जाने से रोकने के लिए प्राप्त है। सुखाचार को हम अंग्रेजी भाषा में ईज़मैनट्री राइट्स भी बोलते हैं। इस सिद्धांत में दो संपत्ति होती हैं पहली जिस संपत्ति के लिए सुखाचार का अधिकार लिया जाना है जैसे संपत्ति 'क' पर जाने के लिए संपत्ति 'ख' से मार्ग लिया जाना है ऐसी स्थिति में संपत्ति अधिष्ठायी संपत्ति कहलाती है एवं जिस संपत्ति से अधिकार लिया जाना है जैसे संपत्ति 'ख' जिस पर से मार्ग चाहिए उसे अधिभोगी संपत्ति कहा जाता है।
सामान्य रूप से कुछ प्रचलित अधिकार जिन्हें सुखाचार समझा जाता है वह है
मार्ग का अधिकार जिसके अंतर्गत स्थावर संपत्ति के स्वामी को अपनी संपत्ति पर यदि कोई अन्य वैकल्पिक मार्ग ना हो तो लगी हुई संपत्ति से मार्ग प्राप्त करने का अधिकार है; हवा तथा रोशनी का अधिकार जिसके अंतर्गत संपत्ति स्वामी को किसी दूसरी संपत्ति के स्वामी के ऐसे हर कार्य को रोकने का अधिकार प्राप्त है जिससे उसकी संपत्ति में हवा एवं प्रकाश का आना बाधित हो; जल प्रदाय तथा जल निकासी का अधिकार जो अधि भोगी संपत्ति से अपनी संपत्ति पर जल प्रदाय हेतु आवश्यक उपकरण तथा मार्ग एवं जल निकाय की समुचित सुविधा का अधिकार अधिक स्थाई संपत्ति। इनके अतिरिक्त भी ऐसे सभी अधिकार जो व्यक्ति को अपनी संपत्ति के पूर्ण उपयोग में सहायक हो सुखाचार की परिधि में आते हैं।
भारतीय सुखाचार अधिनियम प्रमुख रूप से सुखाचार के तीन स्रोत मान्य करता है:
आवश्यकता का सूखा अचार: अधिनियम की धारा 13 आवश्यकता को इन अधिकारों का स्रोत मानती है, यह वह अधिकार हैं जिन की अनुपस्थिति में व्यक्ति अपनी संपत्ति का उपयोग नहीं कर सकता हो यह अधिकार अधिक स्थाई संपत्ति के उपयोग के लिए अनिवार्य है जैसे मार्ग, जल स्रोत, प्रकाश, उपयोग वाली दीवाल पर पार्श्वी सहारे का अधिकार इत्यादि इन अधिकारों के लिए आवश्यक है की अधिशासी संपत्ति के पास कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो।
चिर भोग द्वारा अर्जन: अधिनियम की धारा 15 ऐसे अधिकारों को सुनिश्चित करती है जो अधिष्ठाई संपत्ति का स्वामी एक लंबे समय से लगातार बिना किसी रूकावट के उस अधिकार का उपयोग करता रहा हो वह उस अधिकार के उपयोग के लिए अधिकारी हो जाता है। या उपबंध उन अधिकारों को सुरक्षित करता है जो एक लंबे समय से उपयोग किए जा रहे हो भले ही उनका विकल्प मौजूद हो यद्यपि इस प्रावधान के अंतर्गत ऐसे अधिकार प्राप्त नहीं किया जा सकता जो अधिभोगी संपत्ति को ही नष्ट कर दें।
रुढित सुखाचार : यह अधिकार हैं जो किसी क्षेत्र विशेष में किसी प्रचलित रूढी या मान्यता की वजह से प्राप्त होते हैं जैसे किसी व्यक्तिगत संपत्ति पर स्थापित देवस्थान जहां पर सार्वजनिक रूप से पूजा किया जाना रूढ़ि या रिवाज का हिस्सा हो या अन्य किसी भी भूमि या स्थल पर किसी विशेष कार्य का निष्पादन उस क्षेत्र की रीति रिवाज का हिस्सा हो
सुखाचार या सुविधा का अधिकार सामान्य जानकारी में ना होने की वजह से सामान्यतः फलित किया जाना वाला एक आवश्यक अधिकार है जिसके सही एवं जागरूक उपयोग से अनियमित कॉलोनी अथवा ग्रामीण क्षेत्र में कृषि भूमि इत्यादि के बेहतर व्यवस्थापन तथा संपत्ति के बेहतर उपयोग को सुनिश्चित किया जा सकता है तथा दृश्य भूमि कानूनों (लैंडस्कैपिंग लॉज) की आधारशिला रखने में उपयोगी हो सकता है। डॉ० सर्वम रितम खरे एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया