पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए प्रियंका गांधी की विश्वसनीय टीम में शामिल होने लगे दीपेंद्र हुड्डा
punjabkesari.in Friday, Dec 24, 2021 - 10:19 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी): हरियाणा के संदर्भ में किसान आंदोलन के नफे-नुकसान को देखा जाए तो प्रदेश सरकार समेत 15 में से 14 सांसद किसानों के विरोध में एक तरफ खड़े थे और कांग्रेस के अकेले सांसद दीपेन्द्र हुड्डा सड़क से लेकर संसद तक किसानों के पक्ष में मजबूती से लड़ाई लड़ रहे थे। वहीं सत्ताधारी दल के 14 सांसद तीनों कृषि कानून के पक्ष में खड़े थे। दीपेंद्र हुड्डा ने संसद में तो सरकार से जमकर लोहा लिया ही, हरियाणा समेत दिल्ली की सीमाओं पर लगे किसान धरनों पर लगातार जाकर किसानों का समर्थन भी किया। इसके अलावा, उन्होंने धरनों पर बैठे किसानों के लिए पानी, शौचालय, साफ सफाई जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को उपलब्ध कराने का हर प्रयास किया और काफी हद तक उनकी बुनियादी समस्याओं का समाधान कराया।
कांग्रेस के एकमात्र राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा जहां किसान आंदोलन के माध्यम से जहां अपने आप को मजबूत करने में कामयाब रहे वही उन्होंने लखीनपुर उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के साथ जाकर व पुलिस हिरासत में रहकर अपने दम पर गांधी परिवार के निकट पहुंचने की सीढ़ी मजबूत की। अतीत में गांधी परिवार के निकट अपने पिता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के संबंधों के आधार पर निकटता बनाने वाले दीपेंद्र हुड्डा अब धीरे-धीरे प्रियंका गांधी की विश्वसनीय टीम में शामिल होते जा रहे हैं।
हरियाणा के बहुत सारे कांग्रेसी दिग्गज नेता ऐसे हैं जो अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के निकट पहुंचने में लगे हुए हैं। कांग्रेस के अंदर संदीप सिंह सुरजेवाला एकमात्र ऐसा चेहरा है जोकि अपने दम पर पहले से ही सोनिया गांधी राहुल व प्रियंका करीबी हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस विधायक दल के द्वारा किसान आन्दोलन के दौरान जान की कुर्बानी देने वाले किसानों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये की मदद देने का काम भी दीपेंद्र हुड्डा की पहल पर हुआ।
हरियाणा के अलावा किसी भी प्रदेश में अपनी निजी कमाई से उन किसान परिवारों की मदद के लिए कोई खड़ा नहीं हुआ, जिनका सबकुछ लुट चुका था, जिन किसानों के घर में कमाने वाला कोई नहीं बचा। किसानों ने भी साबित कर दिया कि वो कृतघ्न नहीं कृतज्ञ वर्ग है। जिस दिन आंदोलन खत्म हुआ और किसान अपने घरों की ओर लौटने की तैयारी कर रहे थे। हरियाणा में एक कार्यक्रम में जा रहे सांसद दीपेंद्र हुड्डा को किसानों ने रोका और पूरे स्नेह के साथ मान-सम्मान का प्रतीक पगड़ी, पटका पहनाकर स्वागत किया और अपने साथ लंगर लेने का भी आग्रह किया। किसानों ने उन पर फूल भी बरसाए और संसद में किसानों की मजबूत पैरवी करने के लिए आभार भी व्यक्त किया।
इस किसान आंदोलन में जहाँ राजनीतिक दलों के नेताओं की घुसने की हिम्मत नहीं हो रही थी, वहीं दीपेंद्र हुड्डा हरियाणा के अकेले ऐसे सांसद थे जो लगातार विभिन्न धरनों पर पहुँचते रहे। हरियाणा के रहने वाले प्रदीप नरवाल जो अतीत में जेएनयू के छात्र नेता रहे हैं प्रियंका गांधी की कोर टीम के बहुत करीबी लोगों में शामिल है। लखीनपुर पुलिस द्वारा हिरासत में रखे जाने पर वह भी प्रियंका गांधी की टीम में शामिल थे।
किसान आंदोलन स्थगित होने के बाद हरियाणा में सबसे हास्यास्पद स्थिति तो उन लोगों की हो चुकी है जो किसानों के खिलाफ ल_ उठाने, किसानों के सिर फोडऩे, आँखें निकालने की बात करते थे। अब उनकी समझ में ये नहीं आ रहा है कि वो रद्द हो चुके कानूनों का समर्थन करें या वापस लेने के फैसले का समर्थन करें। सांप के मुंह में छछूंदर वाला मुहावरा आज उन लोगों पर फिट बैठ रहा है। दिल्ली से सटी सीमाओं वाले राज्यों ने किसानों पर जुल्म ढाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनमें नंबर-1 का खिताब हरियाणा की खट्टर सरकार ने अपने नाम किया। लेकिन इसके बावजूद किसानों ने शान्ति का रास्ता नहीं छोड़ा क्योंकि उनको पता था कि शान्ति उनके आंदोलन की जीत का सबसे बड़ा हथियार है।
किसानों को टुकड़े-टुकड़े गैंग, पाकिस्तानी, देशद्रोही, गद्दार, विदेश से फंडेड, आंदोलनजीवी, मवाली और न जाने क्या-क्या कहा गया। किसानों को प्रताडि़त और अपमानित कर शांति के रास्ते से भटकाने, उकसाने और आंदोलन तोडऩे का भी हर प्रयास हुआ। मीडिया के ज़रिए किसानों पर हमला हुआ, पुलिस के ज़रिए हमला किया गया। अपनी बात कहने दिल्ली आ रहे किसानों के रास्ते में मोटी-मोटी नुकीली कीलें गाड़ दी गईं, कंटीली तारें लगा दी गईं, आंसू गैस के गोले, कड़ाके की सर्दी में ठंडे पानी की बौछारें मारी गई। लखीमपुर में किसानों को साजिश रच कर दिन-दहाड़े गाडिय़ों से रौंद दिया गया। यहाँ भी प्रियंका गाँधी के साथ किसानों के आंसू पोंछने जा रहे सांसद दीपेन्द्र हुड्डा के साथ पुलिस ने न केवल धक्का-मुक्की की बल्कि 3 दिन तक उनको बिना किसी अपराध के हिरासत में कैद कर लिया। सरकार एक साल तक किसानों को ताकत के बल पर दबाने की कोशिश करती रही लेकिन किसान दबे नहीं।
किसान आंदोलन को नफे नुकसान के अलावा देश विदेश में अलग-अलग नजरिए से भी देखा गया। इस आंदोलन में जहां किसानों की जबरदस्त एकजुटता सामने आई वहीं किसानों का धैर्य, त्याग, तपस्या, जुझारूपन, सूझ-बूझ, सहनशीलता, प्रेम, बलिदान, मानवता आदि सब कुछ नजऱ आया। किसानों ने शांति और अहिंसा के हथियार से आजादी के बाद की संभवत: सबसे लंबी लड़ाई लड़ी व पूरे सम्मान के साथ जीत हासिल की। किसान आंदोलन ने देश में लोकतंत्र की ताकत को फिर से जिन्दा कर दिया। किसानों ने अपनों को जरूर खोया लेकिन बता दिया कि किसान को इस देश की मिट्टी की तासीर पता है। सरकार भी समझ गई कि किसान आंदोलन ने उसकी मिट्टी को दरका दिया है जिसका एक साल का लेखा-जोखा आने वाले समय में उसे बहुत महंगा पड़ेगा।
(हरियाणा की खबरें टेलीग्राम पर भी, बस यहां क्लिक करें या फिर टेलीग्राम पर Punjab Kesari Haryana सर्च करें।)
सबसे ज्यादा पढ़े गए
Related News
Recommended News
Recommended News

Festivals of july month 2022: जुलाई के पहले पखवाड़े के ‘व्रत-त्यौहार’ आदि

Gupt Navratri 2022: कर्ज का भार कर रहा है परेशान तो 9 दिन करें ये उपाय

Gupt Navratri 2022 में व्रत रखकर पूजा करें या नहीं, जानिए क्या कहते धार्मिक शास्त्र?

Ashadha gupt Navratri 2022: इस विधि से करें घट स्थापना, पूरी होगी हर कामना