हुड्डा, किरण, शैलजा व तंवर के फार्मूलों पर निर्णय नहीं ले पाया हाईकमान

punjabkesari.in Sunday, Sep 01, 2019 - 10:39 AM (IST)

फरीदाबाद (महावीर):  हरियाणा कांग्रेस कमेटी के नेताओं के बीच विकराल रूप धारण कर चुकी गुटबाजी को खत्म करने में हाईकमान शनिवार को भी सफल नहीं हो पाया। वीरवार व शुक्रवार को भूपेंद्र सिंह हुड्डा, किरण चौधरी,अशोक तंवर व कुमारी शैलजा से प्रदेश के मामलों में राय जरूर ली गई लेकिन सबकी राय अलग-अलग होने से हाईकमान गुटबाजी खत्म करने का फार्मूला तैयार नहीं कर पाया। 
सूत्रों अनुसार हरियाणा मामले में शनिवार को भी सोनिया गांधी व गुलाम नबी आजाद के बीच  लंबी मंत्रणा हुई लेकिन देर सायं तक मुख्यालय से किसी निर्णय संबंधी कोई अधिकारिक पुष्टि  नहीं की गई।  उधर, भूपेंद्र सिंह  हुड्डा की तरफ से भी कोई जानकारी नहीं दी गई। 

उल्लेखनीय है कि हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी खत्म करने के लिए सोनिया गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही प्रयास शुरू हो गए थे। प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद की मध्यस्थता से भूपेंद्र हुड्डा को रोहतक की परिवर्तन रैली में कांग्रेस छोडऩे से इसीलिए रोका गया था लेकिन काफी वक्त बीतने पर भी जब कोई निर्णय नहीं लिया गया तो हुड्डा द्वारा पूछे जाने पर पुन: सोनिया गांधी से बात की गई और हुड्डा की मुलाकात कराई गई। उसके बाद किरण चौधरी,कुमारी शैलजा व अशोक तंवर से भी हरियाणा को लेकर राय ली गई लेकिन सभी नेताओं की अलग-अलग राय सामने आने से हाईकमान कोई फैसला नहीं ले पाया। हाईकमान यदि एक नेता को संतुष्ट करने का प्रयास करता है तो अन्य नाराज नजर आते हैं इसलिए सभी को संतुष्ट करने का फार्मूला हाईकमान शनिवार को भी नहीं बना पाया। भूपेंद्र हुड्डा द्वारा जो फार्मूले हाईकमान को सुझाए गए थे,उन पर अशोक तंवर को तो आपत्ति है ही साथ ही किरण चौधरी भी सहमत नहीं हैं। इतना ही नहीं हुड्डा के फार्मूलों पर कुमारी शैलजा चुप्पी साधे हुए हैं।

हुड्डा को पार्टी से निकालना चाहती है हाईकमान?
कांग्रेस हाईकमान हरियाणा में पिछले 4 सालों से चल रहे हुड्डा-तंवर विवाद का समाधान करने में पूरी तरह से असफल रही है। हुड्डा गुट ने अपना पूरा जोर लगा लिया और विभिन्न तरह का दबाव भी बनाया पर हाईकमान झुका नहीं। हुड्डा ने रोहतक में रैली कर शक्ति प्रदर्शन भी किया पर वह भी बेकार गया। अब पिछले 4 दिनों से दिल्ली दरबार में बैठकों का दौर चल रहा है पर ठोस परिणाम की बजाय सिर्फ चर्चाएं सामने आ रही हैं।   वहीं चर्चाकारों का यह भी कहना है कि कांग्रेस भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को पार्टी से दूर करना चाहती है क्योंकि चुनाव का समय है तो पार्टी हुड्डा को स्पष्ट तो कहेगी नहीं कि वह पार्टी छोड़ दें पर हालात ऐसे ही पैदा कर रही है कि वह खुद ही पार्टी से दूर हो जाएं? वैसे हालात भी अब ऐसे ही बनते जा रहे हैं। अगर कांग्रेस हुड्डा को पार्टी से अलग करती है तो इस चुनाव में जाट वोटर कांग्रेस के लिए नई मुसीबत  खड़ी कर देंगे इसलिए पार्टी चाहती है कि हुड्डा खुद ही  कांग्रेस को अलविदा कह दें। अगर हाईकमान की ऐसी सोच न होती तो वह दोनों पक्षों को बैठा कर मामले का समाधान चंद घंटों में ही कर देती। 

चुनावी समय में कार्यकत्र्ता हुआ भ्रमित
अगर सभी पहलुओं पर मंथन किया जाए तो इस विवाद में और हाईकमान के इस रवैये के चलते कार्यकत्र्ता अब कांग्रेस से दूर होने लगा है। कार्यकत्र्ता पूरी तरह भ्रमित हो चुका है कि उसको किसके लिए क्या काम करना है? अब तो वह यह कहने लगा है कि उसने तो कांग्रेस को वोट देना है,सो दे देगा। अगर यही हालात रहे तो कार्यकत्र्ता अपना पाला बदलने लगेगा।
सम्भावित प्रत्याशियों को जीत व टिकट की सताने लगी ङ्क्षचता अब तो कांग्रेस के सम्भावित प्रत्याशियों को टिकट और चुनावी जीत की भी ङ्क्षचता सताने लगी है। फिर भी कार्यकत्र्ता से लेकर बड़े नेता तक सभी की नजरें हाईकमान की किसी भी तरह की घोषणा पर लगी हुई हैं।      


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Isha

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