स्वार्थपूर्ति हेतु राजनीतिक दल ब्राह्मण समाज के करवा रहे हैं सम्मेलन :कृष्ण भारद्वाज
punjabkesari.in Sunday, Aug 20, 2023 - 09:38 PM (IST)

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): परशुराम इंटरनेशनल हरियाणा के प्रदेश प्रवक्ता कृष्ण भारद्वाज ने कहा की प्राचीनकाल के दौरान मनु जी के समय हुई वर्ण व्यवस्था के दौरान समाज को चार भागों में विभक्त किया गया। सर्वोपरि स्थान शिक्षा को, दूसरा रक्षा को, तीसरा व्यवसाय को और चौथा सेवाओं को स्थान दिया गया। कालांतर में यही वर्ग जाति रूप में विकसित हो गए। समाज और राजघरानों को शिक्षित करने का सबसे बड़ा दायित्व लेने वाला ब्राह्मण कहलाया। शारीरिक रूप से हष्ट- पुष्ट, ताकतवर और जांबाज विचारधारा के लोगों को क्षत्रिय कहा गया। व्यापार में कुशाग्र बुद्धि जीव वैश्य कहलाए तथा अपेक्षाकृत शरीर व मन से कमजोर वर्ग को शूद्र का नाम दे दिया गया। लंबे समय तक ब्राह्मण जाति ने पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। राजघरानों को जन हितेषी राजनीति का पाठ पढ़ाया। बड़े-बड़े राजाओं के कुलगुरु बन कर उनमें समाज हित की सोच बनाए रखी।
वेदों-उपनिषदों की रचना भी ब्राह्मण समाज ने की। समाज को सामाजिक शिक्षा दी। सामाजिक संरचना बनाई जिसमें विवाह नियम- नाते, रिश्तेदारों के कर्तव्य, राजा के जनता के प्रति भाव, दंड प्रणाली, यानि समाज के संचालन की व्याकरण ब्राह्मण समुदाय ने बड़ी सूझबूझ से तैयार की। हजारों वर्षों तक समाज इस संरचना के अनुसार चला रहा। यहां तक कि राज्य से आदेश या संविधान आने उपरांत भी सामाजिक नियम पुरातन ही रहे जो आज भी हमारे विवाह-शादियों व धार्मिक अनुष्ठानों समेत अन्य अवसरों पर देखे जा सकते हैं। ब्राह्मण समाज के बुद्धिजीवी आज राजनीतिक और सामाजिक रूप से समाज में क्या बदलाव मानते हैं, इस बारे परशुराम इंटरनेशनल हरियाणा के प्रदेश प्रवक्ता कृष्ण भारद्वाज ने कहा मुझे यह कहने में कतई एतराज नहीं कि ब्राह्मणों वाले काम कुछ ब्राह्मण के ही रहे, जबकि आराम व प्रतिष्ठा को देखते हुए ब्राह्मण समुदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा इन कार्यों से दूर हो गया और यही से धर्म-शिक्षा के नाम पर लालच का जन्म हुआ। बड़े-बड़े आडंबर बनाकर समाज पर लाद दिए गए। जिससे शूद्र वर्ग को बहुत पीड़ा से गुजरना भी पड़ा। अनुसूचित वर्ग द्वारा आज ब्राह्मण समुदाय का किए जाने वाला विरोध इस पीड़ा का एक रिएक्शन माना जा सकता है।आज समाज में नए-नए धर्म नई-नई जातियां बन गई हैं।
हर मौके पर ब्राह्मण जाति ने अपने को प्रखर बुद्धिवान और सर्वश्रेष्ठ योद्धा साबित किया है। यह सभी मानते भी हैं कि ब्राह्मण के मैदान में उतरने के बाद उसे भगवान भी नहीं हरा सकता। लेकिन सबसे बड़ी दुखद घटना यह है कि ब्राह्मण की आपसी फूट ने इस जाति को एक कमजोर वर्ग बना दिया है। इसका मुख्य कारण ब्राह्मण जाति का तिलों की तरह भारत के दूर-दूर तक कोनों में फैल जाना रहा जबकि बनिया- ब्राह्मण को छोड़ अन्य कोई ऐसी जाति नहीं जो पूरे देश में वास करती हो। पूरे भारतवर्ष की लैंड होल्डिंग मे भी ब्राह्मण जाति के पास जमीन और संसाधन बहुत अधिक हैं। लेकिन अन्य जातियों गुर्जर-राजपूत- जाट- अहीर- इत्यादि धान की फसल की तरह सघन क्यारियों में है। यह जहां हैं वहां एक बड़ी आबादी के रूप में है और अन्य क्षेत्रों में भी ये अधिपत्य चाहते हैं। लेकिन इनके रास्तों में ब्राह्मण ही अपनी सूझबूझ के कारण बड़ी रुकावट बनता है।
इसी कारण ही क्षेत्र अनुसार ब्राह्मण जाति का टकराव कहीं जाटों, कहीं राजपूतों, कहीं अहीरों से किसी न किसी रूप में होता रहता है। यह मेरा दावा है कि अगर ब्राह्मण जाति किसी एक प्रदेश में बस गई होती तो हमेशा ही राजा रहती। लेकिन सारे स्कूल जिस तरह एक जगह नही बनाए जा सकते उसी प्रकार ब्राह्मण को भी दूर-दूर बसाकर ही समाज को शिक्षित करना संभव था। क्योंकि एक ब्राह्मण एक स्कूल से कम कतई नहीं था। ब्राह्मण ने सदा अपने कर्तव्यों का खूब निर्वहन करते हुए अपनी दूरी धन संचय और अन्य संपत्ति अर्जन से बनाए रखी। धार्मिक अनुष्ठान के बदले केवल मान- सम्मान तथा भोजन तक सीमित रहकर अपने संसाधनों को ब्राह्मण खोता चला गया। आज के दौर में मुट्ठीभर जातियां संगठित होकर बड़ी-बड़ी लाल ठोक रही हैं और विश्व गुरु होकर भी ब्राह्मण रसातल में पहुंचा नजर आने लगा है।
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