सोनिया की विश्वासपात्र शैलजा ने कार्यकर्ताओं में पैदा किया नया विश्वास !
punjabkesari.in Wednesday, Feb 17, 2021 - 11:33 PM (IST)

संजय अरोड़ा: अपने सरल व्यवहार और सियासी सूझबूझ के साथ साथ संयमित नेत्री के रूप में अपनी विशेष पहचाने रखने वाली हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अपने 17 माह के कार्यकाल में न केवल कांग्रेस की गुटबाजी को काफी हद तक दूर करने में सफलता हासिल की, वहीं इस अवधि में अपने लंबे सियासी अनुभव के आधार पर प्रदेश में कांग्रेस को सक्रिय करने के अलावा कार्यकर्ताओं में भी एक नए जोश का संचार किया और खुद को भी गुटबाज़ी से दूर ही रखा।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के परिवार के अत्यंत विश्वासपात्र नेताओं की श्रेणी में शामिल कुमारी शैलजा को लेकर खास बात यह भी रही कि उनका किसी भी मुद्दे पर पार्टी के किसी नेता से कोई विवाद नहीं रहा और वे कार्यकर्ताओं में भी नया विश्वास पैदा करने में सफल रहीं।
गौरतलब है कि पार्टी के सभी विधायकों के अलावा नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ बेहतर तालमेल बनाए रखने का ही नतीजा है कि अब एक बार फिर से हरियाणा में कांग्रेस एक प्रभावी राजनीतिक दल के रूप में उभर कर सामने आया है। 2014 और 2019 के संसदीय व विधानसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस संगठनात्मक लिहाज से एक ठोस विपक्षी दल के रूप में अपनी भूमिका निभाने में सफल रही है और जमीनी स्तर पर सार्वजनिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाने से पार्टी को संजीवनी मिली है।
गौरतलब है कि हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हाईकमान की ओर से हरियाणा कांग्रेस में बड़ा बदलाव किया गया था। सितम्बर 2019 में कांग्रेस हाईकमान ने डा. अशोक तंवर की जगह कुमारी शैलजा को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी। उसके बाद अक्तूबर 2019 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस में हुए बदलाव के साथ साथ निवर्तमान प्रदेशाध्यक्ष डा. अशोक तंवर द्वारा पार्टी को अलविदा कह देना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था।
उस दौरान सियासी पर्यवेक्षक यही कयास लगा रहे थे कि पहले से ही गुटबाजी में बंटी हुई कांग्रेस का अब मजबूती से खड़ा होना नामुमकिन ही है, मगर कयासों से विपरीत उस समय कुमारी शैलजा के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनाव में और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व अन्य नेताओं की मदद से काग्रेस ने अपेक्षा से अच्छा प्रदर्शन करते हुए 31 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने चुनाव में 28.08 प्रतिशत वोट हासिल किए जो 2014 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 7.50 प्रतिशत अधिक थे।
सरकार को घेरने का लगातार जारी है अभियान
कांग्रेस की ओर से कुमारी शैलजा के नेतृत्व में पिछले कुछ समय से एक प्रभावी विपक्ष की भूमिका भी पार्टी साफ तौर पर निभाती नजर आ रही है। कांग्रेस अब किसानों को पार्टी के साथ जोडऩे के मूलमंत्र पर काम कर रही है। इसके लिए धरने-प्रदर्शनों से लेकर किसान महापंचायतों का सहारा लिया जा रहा है। विधानसभा और खंड स्तर पर किसान महापंचायत कार्यक्रम लगभग पूर्ण होने को है इसके बाद फरवरी माह में ही जिला स्तरीय कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे और मार्च महीने में राज्यस्तरीय किसान महापंचायत होनी है।
उल्लेखनीय है कि इन किसान महापंचायतों में तीन कृषि कानून, पैट्रोल डीजल के बढ़ते दाम, रसोई गैस के दाम, कानून व्यवस्था, महंगाई जैसे मुद्दों को उठाया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा का साफ कहना है कि जब तक तीन काले कृषि कानून रद्द नहीं होते, उनका आंदोलन जारी रहेगा। यहां यह भी खास बात है कि किसान महा पंचायतों के अलावा शैलजा किसानों द्वारा दिए जा रहे लगभग सभी धरनों व प्रदर्शनों में भी शिरकत कर चुकी हैं।
मुद्दों-मसलों को लेकर आवाज की बुलंद
बतौर हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने 17 माह के अपने अब तक के कार्यकाल में हरियाणा के महत्वपूर्ण मुद्दों और मसलों को लेकर आवाज बुलंद की है। खास बात यह है कि शैलजा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कांग्रेस के सभी विधायकों और बड़े नेताओं के साथ अच्छा तालमेल स्थापित करने में कामयाब रही हैं। अभी तक पार्टी के किसी भी बड़े नेता के साथ किसी तरह का उनके साथ विवाद सामने नहीं आया है। विधानसभा चुनाव के बाद हुए बरोदा उपचुनाव तक तमाम मंचों पर सरकार एकजुट नजर आई है, जिसका नतीजा यह रहा कि पार्टी चुनाव जीतने में सफल रही ।
यही नहीं पैट्रोल-डीजल के दाम, रसोई गैस के दाम, महंगाई, कानून व्यवस्था, किसानों के मुद्दों को लेकर भी कुमारी सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस एक परिपक्त, एकजुट विपक्षी दल के रूप में नजर आई है। अनेक मुद्दों पर सैलजा की अगुवाई में जिलास्तर से लेकर राज्यस्तर पर किए गए धरने-प्रदर्शन इसकी गवाही हैं।
चार बार रह चुकी हैं कैबिनेट मंत्री
कुमारी शैलजा केंद्र सरकार में चार बार मंत्री रह चुकी हैं। साल 1988 में उन्होंने सियासत में दस्तक दी। उनके पिता दलबीर सिंह के निधन के बाद सिरसा संसदीय आरक्षित सीट पर उपचुनाव हुआ। शैलजा 1988 का उपचुनाव लोकदल के हेतराम से हार गई। उसके बाद कुमारी शैलजा सिरसा से 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रही। वे दो बार अम्बाला से सांसद निर्वाचित हुई और एक बार राज्यसभा सदस्य भी रहीं। मंत्री रहते कुमारी शैलजा ने अपने क्षेत्र का खूब विकास करवाया और उनकी यही विकास लगन पार्टी में तत्कालीन बड़े नेताओं से उनके मनमुटाव का कारण भी बनी।
सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं शैलजा
कुमारी शैलजा 2018 से पहले सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय नहीं थीं। पर उसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी। मई 2018 में फेसबुक पर उनका ऑफिशयल पेज बनाया गया। आज फेसबुक पर उनके 1.63 लाख फॉलोअर्स हैं। ट्विटर पर भी वे सक्रिय हैं। ट्विटर पर करीब 84 हजार 500 लोग उन्हें फॉलो करते हैं। अब तक वे करीब 7941 ट्विट कर चुकी हैं। अब तक शायद ही देश व प्रदेश का कोई ऐसा बड़ा मसला नहीं होगा, जिसे लेकर कांग्रेस नेत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त न की हो।
विकट परिस्थितियों में भी नहीं हुई विचलित
कुमारी शैलजा के सियासी जीवन में कई बार उतार चढ़ाव भी आए हैं, मगर वे इन विकट परिस्थितियों में भी संयमित रहीं और कभी विचलित नहीं हुईं। 1988 में हुए सिरसा संसदीय उपचुनाव में वे शैलजा चुनाव तो हार गईं, मगर सक्रिय रहीं। 1989 में इस सीट पर पुन: हुए चुनाव में कुमारी शैलजा की टिकट काट दी गई। इससे वे निराश तो हुईं, मगर न विचलित हुईं और न पार्टी छोड़ी, जबकि उड़ समय उन्हें दूसरे दलों से निरंतर ऑफर आ रहे थे। ऐसा ही समय उनके सियासी जीवन में फिर उस समय आया जब पिछले वर्ष मार्च में उनकी राज्यसभा के लिए टिकट काट कर दीपेंद्र हुड्डा को दे दी गई, तब भी वे बजाय विचलित होने के सामान्य रूप से पार्टी के कार्य करती रहीं और आज भी उनका यह दौर जारी है।
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