1946 की भारतीय सरकार कांग्रेस व मुस्लिम लीग के गठबंधन से मिलकर बनी थी-राम नारायण यादव

punjabkesari.in Tuesday, Jun 27, 2023 - 11:39 PM (IST)

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): देश-प्रदेशों में गठबंधन की सरकारें बनती रही हैं। इसके क्या कारण हो सकते हैं। इनकी संवैधानिक व कानूनी स्थिति आदि क्या है, इस बारे में चर्चा की हमारे संवाददाता  चंद्रशेखर धर्नी ने संविधान व संसदीय प्रणाली के जानकार, पंजाब में रहे विधानसभा अध्यक्ष के सलाहकार व पूर्व अतिरिक्त सचिव, हरियाणा विधानसभा राम नारायण यादव से। जानते हैं संसदीय प्रणाली में यह व्यवस्था कितनी प्रभावशाली व आवश्यक है।

राम नारायण ने गठबंधन और वह भी राजनीति में, क्या यह कुछ अजीब सा नहीं लगता विशेषकर जब सरकार बनाने के लिये ऐसे गठजोड किये जाते हैं पर कहा कि गठबंधन की सरकार बनाना न तो मजबूरी है और न बाघ्यता, हां, यह लोकहित में लोकतंत्र की बाध्यता है, जनता की जरूरत है तथा संसदीय-राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है। इसके ठोस कारण भी हैं। चुनाव कई मायनों से एक विशेष व कठिन प्रक्रिया है, जो बार बार, वह भी आम चुनाव, थोडे समय के लिये कराने संभव नहीं हैं क्योंकि इस पर भारी जनधन व जनशक्ति खर्च होती है। ऐसा कहना हमारे संविधान निर्माताओं का भी था, विशेषकर जून, 1949 को संविधान सभा में डा. अम्बेडकर जी का। कुछ भी कहा जाये परंतु हंग सदन होने की स्थिति में गठबंधन सरकार बनाने की आवश्यकता होती ही है और वह भी जनता के हित में। चाहे वह गठबंधन चुनाव से पहले का हों या चुनावों के बाद का। हालांकि चुनावों के बाद बने गठबंधन की सरकार में शामिल दलों को अन्य दलों व जनता की आलोचना का शिकार होना स्वाभाविक है। वह भी जब जबकि, गठबंधन में शामिल कुछ दल सामान्यतः विपरीत विचारधारा के आधार पर चुनाव जीत कर आते हैं। परंतु ऐसे गठबंधन जनता के हित में आवश्यक हैं, और यह संसदीय प्रणाली की आवश्यकता भी है। जिसे संविधानिक वैधता प्राप्त है; जैसे कि सदन में अनुच्छेद-189 के अंतर्गत बहुमत से निर्णय लेना, सरकार गठन बारे - राज्यपालों की समीति की रिपोर्ट, सरकारिया कमिशन व पुंछी कमिशन की गाइडलाईंस तथा मामनीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय।

राम नारायण यादव ने कहा कि  जी, ऐसा नहीं है कि ऐसी व्यवस्था कोई नयी या संविधान बनने के बाद पैदा हुई व्यवस्था है। यह आजादी से पहले 2 सितम्बर, 1946 को बनी प्रथम भारतीय सरकार के समय, बल्कि उससे पहले भी 1921 से 1946 तक भारत में जब जनप्रतिनिधित्व प्रणाली लागू हुई तब से गठबंधन सरकार बनाने की धारणा व प्रथा बनी हुई थी। जहां 1946 की भारतीय सरकार कांग्रेस व मुस्लिम लीग के गठबंधन से मिलकर बनी थी, वहीं कई प्रांतीय चुनावों में, विशेषकर 1937 के बाद से, मिलीजुली सरकार बनीं, क्योंकि तब कोई भी दल कई प्रांतो में उंरवतपजल हासिल नहीं कर पाया था।

राम नारायण यादव ने कहा कि अलग हरियाणा प्रदेश 1966 में बना। तब संयुक्त पंजाब से हरियाणा के हिस्से में 54 सदस्य आये थे और पहली कांग्रेस की बहुमत की सरकार बनी। हरियाणा में 1967 के पहले चुनावों में ही दूसरी विधान सभा में गठबंधन की सरकार बनी, जो कुछ दिन ही चली। 1982-87 की फिर गठबंधन की सरकार बनी; जिसके दौरान 1985 में दल-बदल कानून भी आया, और भारी मात्रा में दल-बदल हुआ। 1996-99 में फिर गठबंधन की सरकार बनी और इस दौरान दो बार ऐसी सरकारें बनीं और भारी मात्रा में दल-बदल हुआ। 2000-2005 में हालांकि आई एन एल डी बहुमत में थी परंतु यह भी गठबंधन की सरकार ही थी। हालांकि सहयोगी दल बी जे पी के 6 सदस्यों ने 19.7.2004 को सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। 2009-2014 तथा 2019-2024 वर्तमान सरकार बडे दलों कीे 40-40 सीटों के नेतृत्व में ;बाद में संख्या बल बदल गयाद्ध गठबंधन की सरकार रहीं। वर्तमान हरियाणा में गठबंधन बारे पूछे गये प्रश्न को वह टाल गये। हालांकि उन्होंने कहा, वर्तमान सरकार के गठबंधन की विशेषता यह कही जा सकती है कि 1985 में दल-बदल कानून आने के बाद गठबंधन की सरकार के सहयोगी दलों में चाहे 2009-2014 की हो या 1996-1999, 1982-1987 की इनमें थोडे समय में ही दल-बदल देखने को मिला। वहीं वर्तमान 2019 के गठबंधन में दल बदल या गठबंधन टूटने जैसी बात लगभग 4 वर्ष के अंतराल में भी देखने को नहीं मिली जो इस गठबंधन व उच्च नेतृत्व की दूरदर्शिता का ही परिणाम कहा जा सकता है।

एक अन्य प्रश्न के जबाब में उनका कहना था कि गठबंधन कोई बुराई या मतलब इसलिये भी नहीं कहा जा सकता कि; प्रथम तो इसकी जरूरत के कारण उपर बताये हैं; दूसरे, हमारे संविधान का आर्टिकिल-189 सदस्यों के बहुमत की बात करता है न कि दल के बहुमत की; तीसरा, फादर आफ दी लोक सभा श्री मावलंकर का कहना था कि लोकतंत्र सही मायने में उन्नति की तरफ अग्रसर तभी रह सकता है जब कम से कम, विशेषकर दो दल ही हों जो सत्ता व विपक्ष के रूप में आपस में संतुलन बनाये रख सकें; तथा चौथा, आज जहां प्रचार-प्रसार का युग है और मतदाता स्थिति को जानने व समझने में स्वतंत्र रूप से सक्षम हैं वहीं क्षेत्रीय दल किसी न किसी रूप में जनता में अपना प्रभाव बनाये रखते हैं। ऐसे सभी कारण गठबंधन की संवैधानिक-कानूनी आवश्यकता व बाध्यता की धारणा को बनाये रखते हैं। 

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Content Editor

Ajay Kumar Sharma

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