नदी के किनारे की गतिविधियों के अधीन भूमि की निरंतर माप की जानी चाहिए : हाई कोर्ट

punjabkesari.in Sunday, Mar 31, 2024 - 05:13 PM (IST)

चंडीगढ़(चन्द्र शेखर धरणी):  पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि "नदी के किनारे की गतिविधियों के अधीन भूमि की निरंतर माप की जानी चाहिए, और उसके बाद अधिकारों का राजस्व रिकार्ड में दर्ज होना चाहिए, ताकि  नदी के किनारे के मालिकों को स्वामित्व का दावा करने में सुविधा हो, नदियों के किनारे की भूमि के मालिक व्यक्तिगत काश्तकार न केवल नदियों के किनारों की भूमि के मालिक हैं, बल्कि उनका स्वामित्व नदियों के किनारों के आधे भाग तक भी है। हालांकि, हाई कोर्ट का मानना ​​है कि यदि व्यक्तिगत काश्तकार पहले डूबी हुई भूमि पर स्वामित्व का दावा करना चाहता है, जो बाद में नदियों के मार्ग में परिवर्तन के कारण आसमान के संपर्क में आ गई, तो उसे यह साबित करना होगा कि वह संबंधित नदी के किनारे की भूमि का मालिक है।हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर तथा जस्टिस  सुदीप्तिशर्मा की खंडपीठ ने धर्मपाल शर्मा व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए।  इस मामले में विवाद पंचकूला क्षेत्र में टांगरी नदी की नदी गतिविधि से संबंधित था।

 पंजाब और हरियाणा राज्य में नदियों के किनारे की भूमि के संबंध में किसी भी सर्वेक्षण के अभाव को देखते हुए, हाई कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों के अतिरिक्त मुख्य सचिवों (राजस्व) को निर्देश दिया है कि वे तीन महीने के भीतर उन क्षेत्रों में संबंधित हलकों में दो कानूनगो और दो पटवारी तैनात करें, जो नदी कार्रवाई के अधीन हैं। हाई कोर्ट ने कहा, "नदी के किनारे की गतिविधियों के अधीन भूमि की निरंतर माप की जानी चाहिए, और उसके बाद अधिकारों का राजस्व रिकार्ड में दर्ज होना चाहिए, ताकि  नदी के किनारे के मालिकों को स्वामित्व का दावा करने में सुविधा हो, जो कि उनके स्वामित्व वाली भूमि पर पानी आने का बाद जमीन का सीमांकन मिट जाता है।  

कोर्ट ने  ने आगे स्पष्ट किया कि यदि नदियों के मार्गों में परिवर्तन के संदर्भ में उक्त मार्किंग नहीं की जाती  तो इससे नदी के किनारे के मालिकों के स्थापित अधिकारों पर कुठाराघात होने की संभावना है, जो स्पष्ट रूप से संबंधित जल निकायों से जुड़ी भूमि के मालिक हैं, और, जो संबंधित नदियों के तल के मध्य तक की भूमि के भी मालिक हैं, और, जो ऐसी नदी तल के पानी खत्म होने के बाद वास्तविक रूप  में आने पर, इस प्रकार नदियों के मार्गों में परिवर्तन की घटना पर, उस पर स्वामित्व अधिकार प्राप्त करने के हकदार हो जाते हैं। नदी की गतिविधियाँ मनुष्यों द्वारा अनियंत्रित होती हैं, बल्कि वे बड़ी मात्रा में होती हैं।  परिणामस्वरूप,  नदियों की गति न तो रुक  सकती है और न ही मानवीय क्रियाकलापों से स्थिर हो सकती है, तब नदी के किनारे का मालिक न तो नदियों के प्रवाह का पूर्वानुमान लगा सकता है और न ही उसे नियंत्रित कर सकता है।

जब संबंधित नदी के किनारे की भूमि का मालिक व्यक्तिगत कृषक नदी में डूबने के कारण अपनी भूमि खोने का जोखिम उठाता है। इसके परिणामस्वरूप, उसे नदी के मार्ग में परिवर्तन के कारण नदी के किनारों पर होने वाले जलोढ़ जमाव का लाभ दिया जाना चाहिए। उक्त नदी किनारे का मालिक उन भूमियों पर स्वामित्व का दावा करने का भी हकदार हो जाता है, जो नदियों के मार्ग में परिवर्तन के कारण  संपर्क में आ जाती हैं।  उक्त निरंतर भूमि सर्वेक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक थे कि नदियों के मार्ग में परिवर्तन होने पर संबंधित राजस्व अधिकारी संबंधित नदियों से सटी भूमि का दौरा करें तथा अभिलेखों को अद्यतन करें, ताकि निजी काश्तकार, जो पहले नदियों के किनारे या उससे सटी भूमि पर काबिज थे, संबंधित नदियों के मार्ग में परिवर्तन होने पर राजस्व अभिलेखों में दर्ज हो जाएं तथा ऐसे जलोढ़ निक्षेपों पर स्वामित्व का दावा करने के हकदार हो जाएं।

अभिलेखों को अद्यतन करने के लिए पहले के अभिलेखों का संदर्भ लेना आवश्यक है, जिसमें ऐसे तटवर्ती स्वामियों को संबंधित नदी के किनारे या उससे सटी भूमि का मालिक बताया गया है। हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि राजस्व एजेंसियों, विशेषकर चकबंदी विभाग को संबंधित स्थलों का निरंतर सर्वेक्षण माप करना आवश्यक है, ताकि अधिकारों के अभिलेखों को कानून के संबंधित प्रावधानों के अनुसार अद्यतन किया जा सके।

 


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Content Writer

Isha

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