मुख्यमंत्री राहत कोष से फर्जीवाड़ा कर लाखों डकारने की कोशिश, पुलिस ने बरती लापरवाही

punjabkesari.in Friday, Sep 07, 2018 - 10:53 PM (IST)

फतेहाबाद(रमेश भट्ट): कैथल में पकड़े गए मुख्यमंत्री राहत कोष से फर्जी मेडिकल आवेदनों की मदद से सहायता राशि लेने की तर्ज पर फतेहाबाद में भी ऐसे मामले सामने आए थे। लेकिन डीसी की चिट्टी के बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की थी, जिसके चलते इन मामलों का मास्टरमाइंड पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा। मामले को ढीला छोडऩे में सबसे अहम रोल पुलिस का रहा है।

जिला राजस्व अधिकारी विजेंद्र भारद्वाज की मानें तो पुलिस विभाग की ओर से कार्रवाई नहीं करने की एवज में जो जवाब भेजा गया उसमें कहा गया कि चूंकि मुख्यमंत्री राहत कोष से रुपये जारी ही नहीं हुए तो यह फ्रॉड हुआ ही नहीं और केस की फाइल बंद कर दी गई। जबकि जिला राजस्व अधिकारी इस मामले के बारे में कहते हैं कि फर्जी दस्तावेज तैयार करके सरकारी खजाने को चूना लगाने की कोशिश हुई, षडयंत्र रचा गया इस विषय को ध्यान में रखकर पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी।

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मामला मीडिया में आने के बाद अब पुलिस विभाग की ओर से डीएसपी हेडक्वार्टर धर्मबीर पूनिया ने कहा है कि यह मामला उनकी यहां पोस्टिंग से पहले का है। मामले को एसपी के संज्ञान में लाया गया है और इस मामले में जांच करने वाले अधिकारियों से पूरी रिपोर्ट ली जाएगी। अगर किसी तरह की लापरवाही मामले में रही है तो लापरवाही करने वाले दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

करीब 25 लाख रुपये के इस घोटाले को अंजाम देने की कोशिश करने वाले मामले के बारे में जिला राजस्व अधिकारी विजेंद्र भारद्वाज ने बताया कि इस गोरखधंधे का खुलासा उस समय हुआ जब फतेहाबाद के गांव थेड़ी के रहने वाले रामदयाल ने तत्कालीन डीसी डा. हरदीप सिंह को शिकायत देकर कहा कि नरेंद्र नामक व्यक्ति ने उससे धोखाधड़ी करके उसके मेडिकल आवेदन के कागज तैयार कर दिए हैं और उससे एक हजार भी ऐंठ लिए हैं। इसके बाद तत्कालीन डीसी ने एसडीएम की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी का गठन किया था।

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इस कमेटी में एसडीएम सतबीर जांगू के अलावा जिला राजस्व अधिकारी विजेंद्र भारद्वाज व सीएमओ डा. मनीष बंसल को शामिल किया गया। तीन सदस्यीय इस कमेटी ने अपनी जांच में मेडिकल राहत आवेदन फार्म नकली पाया। इस बीच जांच टीम को कई और आवेदन ऐसे मिले जो फर्जी थे। जांच टीम ने जब अपनी जांच का दायरा बनाया तो कुल 64 आवेदनों में फर्जी दस्तावेज लगे मिले।

इसके बाद जांच टीम ने पूरे तथ्यों के साथ 64 फर्जी आवेदकों की सूची के साथ अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन डीसी डा. हरदीप सिंह को सौंप दी। डीसी की ओर से एसपी को पत्र लिखकर मामले में एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए लेकिन पुलिस विभाग ने एफआईआर दर्ज करने की बजाय अपने स्तर की जांच करके इस केस की फाइल ही बंद कर दी।

फाइल बंद करने के पीछे तर्क ये दिया गया कि मुख्यमंत्री राहत कोष से पैसा जारी नहीं हुआ इसलिए ये फ्रॉड हुआ ही नहीं। जबकि जिला राजस्व अधिकारी कहते हैं कि सरकारी खजाने को चूना लगाने की कोशिश हुई है और इस विषय को ध्यान में रखते हुए पुलिस को इस घोटाले को अंजाम देने वाले मास्टरमाइंड को पकडऩा चाहिए था। खैर, अब मामला मीडिया में आने के बाद पुलिस विभाग की ओर से डीएसपी धर्मबीर पूनिया मामले की जांंच कर लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कह रहे हैं। 


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Shivam

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