उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने किया भांजे नीरज चोपड़ा का सम्मान, चांदी का भाला भेंट किया

punjabkesari.in Sunday, Aug 29, 2021 - 08:51 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी): टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल हासिल कर भारत का ताज बने नीरज चोपड़ा का कुराना गांव वासियों ने रविवार को भावभीना स्वागत किया। कुराना गांव निवासी उत्तराखंड के मौजूदा डीजीपी अशोक कुमार ने भांजे नीरज चोपड़ा का सम्मान किया। सम्मान से भावुक हुए नीरज ने अपने संबोधन में युवकों को कहा कि वह खेलों और शिक्षा में भरपूर रुचि ले और डीजीपी अशोक कुमार की तरह नाम रोशन करे।

डीजीपी अशोक कुमार ने भी अपने संबोधन में कहा कि अगर प्रदेश के युवा बुलंद हौसले के साथ खेल के मैदान में उतरेंगे तो पदकों से झोली भर जाएगी। समारोह में कुराना गांव वासी नीरज के सम्मान के लिए विशाल संख्या में जोश खरोस के साथ पहुंचे थे। नीरज चोपड़ा का पानीपत जिले के गांव खंडरा में एक बेटे के रूप में भावभीना स्वागत किया जा चुका था। इस सम्मान समारोह में पुत्र भाव से सम्मान और प्यार उड़ेला गया था। इस बीच अब रविवार को पानीपत जिले के कुराना गांव में भांजे नीरज का सम्मान किया गया। कुराना निवासी अशोक कुमार अभी उत्तराखंड के डीजीपी है। अशोक कुमार ने अपनी पत्नी डॉक्टर अलकनंदा सहित अपने भांजे नीरज चोपड़ा का सम्मान चांदी का भाला भेंट करके किया। 

गांव खंडार की तरह ही नीरज के सम्मान की तैयारियां कुरान में की गई थी। नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक 2020 में जेवलिन थ्रो स्पर्धा में गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद अपने सम्मान ग्रहण करने में ही व्यस्त है। वे हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय और मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा सम्मानित किए गए थे। इसके बाद नई दिल्ली में ओलंपिक पदक विजेताओं के साथ सम्मानित किए गए। अब गांव कुराना ने अपने भांजे नीरज का सम्मान बड़े जोश के साथ किया। कुराना गांव की ओर से यह सम्मान समारोह एन एस ए फेब इंटरनेशनल खसरा नंबर 46 पासिना खुर्द पानीपत में आयोजित किया गया।

जेवलिन थ्रो में टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल तक पहुंचने की नीरज चोपड़ा की कहानी दिलचस्प है। सोने का तमगा जीतने के लिए उन्होंने काफी त्याग किए हैं। ध्यान सिर्फ तैयारी पर रहे, इसके लिए उन्होंने एक साल पहले ही मोबाइल फोन से किनारा कर लिया था। वे मोबाइल को स्विच ऑफ रखते थे। जब भी मां सरोज और परिवार के अन्य लोगों से बात करनी होती थी, वे खुद ही वीडियो कॉलिंग करते थे। वह सोशल मीडिया से तो दूर ही रहे। संयुक्त परिवार के सदस्य: नीरज के परिवार में उनके माता-पिता के अलावा तीन चाचा शामिल हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई-बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाडले हैं।

पापा-चाचा ने सात हजार जोड़कर दिलाया भाला
उन्हें इस खेल में अगले स्तर पर पहुंचने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत थी जिसमें बेहतर उपकरण और बेहतर आहार की आवश्यकता थी। परिवार की हालत ठीक नहीं थी और उन्हे 1.5 लाख रुपये का जेवलिन नहीं दिला सकते थे। पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे-तैसे सात हजार रुपये जोड़े और उन्हें अभ्यास के लिए एक जेवलिन लाकर दिया।

जूनियर विश्व रिकॉर्ड बनाकर आए सुर्खियों में 
नीरज 2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ एक ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आए और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। नीरज ने 2017 में सेना से जुड़ने के बाद कहा था कि हम किसान हैं। परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है और मेरा परिवार बड़ी मुश्किल से मेरा साथ देता आ रहा है। लेकिन अब यह एक राहत की बात है कि मैं अपने प्रशिक्षण को जारी रखने के अलावा अपने परिवार का आर्थिक रूप से सहयोग करने में सक्षम हूं।’

बिना कोच वीडियो देख दूर की कमियां 
जीवन में उतार-चढ़ाव का सिलसिला जारी रहा और एक समय ऐसा भी आया जब नीरज के पास कोच नहीं था। मगर नीरज ने हार नहीं मानी और यूट्यूब चैनल से विशेषज्ञों की टिप्स पर अमल करते हुए अभ्यास के लिए मैदान में पहुंच जाते। वीडियो देखकर अपनी कई कमियों को दूर किया। इसे खेल के प्रति उनका जज्बा कहें कि जहां से भी सीखने का मौका मिला उन्होंने झट से लपक लिया।

वजन कम करने के लिए थामा भाला 
खेलों से नीरज के जुड़ाव की शुरुआत हालांकि काफी दिलचस्प तरीके से हुई। संयुक्त परिवार में रहने वाले नीरज बचपन में काफी मोटे थे और परिवार के दबाव में वजन कम करने के लिए वह खेलों से जुड़े। वह 13 साल की उम्र तक काफी शरारती थे। वह गांव में मधुमक्खियों के छत्ते से छेड़छाड़ करने के साथ भैसों की पूंछ खींचने जैसी शरारत करते थे। उनके पिता सतीश कुमार चोपड़ा बेटे को अनुशासित करने के लिए कुछ करना चाहते थे।

काफी मनाने के बाद नीरज दौड़ने के लिए तैयार हुए जिससे उनका वजन घट सके। उनके चाचा उन्हें गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम लेकर गए। नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उन्होंने स्टेडियम में कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से प्यार हो गया। उन्होंने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया और अब वह एथलेटिक्स में देश के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक बन गए। हैं। अनुभवी भाला फेंक खिलाड़ी जयवीर चौधरी ने 2011 में नीरज की प्रतिभा को पहचाना था। नीरज इसके बाद बेहतर सुविधाओं की तलाश में पंचकूला के ताऊ देवी लाल स्टेडियम में आ गए और 2012 के आखिर में वह अंडर-16 राष्ट्रीय चैंपियन बन गए थे। 


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Content Writer

vinod kumar

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