पुलिसकर्मियों के तबादले के नोट्स DGP कार्यालय में दबाए जाने से विज खफा, एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी

punjabkesari.in Wednesday, Apr 14, 2021 - 11:31 PM (IST)

चंडीगढ़ (धरणी): विधायकों, मंत्रियों व गृह मंत्री कार्यालय से भेजे पुलिस कर्मियों के तबादले के नोट्स डीजीपी कार्यालय में दबाए जाने से गृह मंत्री विज खफा हैं। उन्होंने एक सप्ताह में एक्शन टेकन रिपोर्ट मांग पुलिस हेड क्वाटर में खलबली मचा दी है। इसके लिए विज ने अपने प्राइवेट सेक्रेटरी कृष्ण भारद्वाज की ड्यूटी लगाई है कि विधायकों, मंत्रियों व उनके कार्यालय से डीजीपी मुख्यालय गए नोट्स की डिटेल बना एक सप्ताह में इन्हें डीजीपी मुख्यालय से कार्यान्वित करवा एक्शन टेकन रिपोर्ट उन्हें ला कर दिखाएं। चर्चा है कि डेढ़ माह में करीब 500 के करीब तबादला नोट्स विधायकों, मंत्रियों व गृह मंत्री कार्यालय से भेजे गए। जिनमें से सभी डंपिंग जोन में पड़े हैं।

गृह मंत्री अनिल विज हमेशा कहते रहे हैं कि जनप्रतिनिधियों की रिकमंडेशन बेवजह इग्नोर कर डंपिंग जोन में नहीं डालनी चाहिए। हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव बुधवार को अंबाला गृह मंत्री अनिल विज के निवास पर भी पहुंचे व शिष्टाचार के नाते मुलाकात भी की। डीजीपी मनोज यादव द्वारा विज से चल रही नाराजगियों को दूर करने की शुरुआत कितनी प्रेक्टीकली रहेगी, यह भविष्य के गर्भ में है?



विज शुरू से ही डीजीपी कार्यालय की गतिविधियों से संतुष्ट नजर नहीं आए। डायल -112 के डिले पर जिस तरह विज एक्शन में नजर आए व डीजीपी पुलिस मुख्यालय छापा तक मार दिया। कुछ समय के लिए एक आला अधिकारी पर गाज भी गिरी। गृह मंत्री अनिल विज मानते हैं कि पुलिस विभाग का नाता सीधा जनता से है। जब पुलिस अधिकारी खुद गंभीर होंगे तो जन समस्याओं का निवारण निम्न स्तर पर प्राथमिक स्तर पर होने लगेगा। जब नीचे सुनवाई नहीं होगी तो दुखी लोग आला अधिकारियों या सरकार तक भी पहुंचेंगे। पुलिस की जवाबदेही सुनिशित होनी चाहिए।

पुलिस के छोटे से आला अधिकारी संवेदनशील होने चाहिए। गृह मंत्री अपने कार्यालय, घर प्रतिदिन आने वाली शिकायतों वह चाहे व्यक्तिगत रूप से आएं, मेल से आएं, व्हाट्सएप पर आओ को भी स्पीडप करने के लिए प्रयासरत हैं। उनका प्रयास है कि फरियादी को जल्दी इंसाफ मिलना चाहिए। उन पर भी एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी जाती है।

विज एनसीबी को लेकर भी खफा
हरियाणा में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के कार्यालय को लेकर ब्यूरो के एडीजीपी श्रीकांत जाधव और डीजीपी मनोज यादव के बीच विवाद गहरा गया है। एडीजीपी श्रीकांत जाधव ने गृह सचिव राजीव अरोड़ा के पत्र पर गृह मंत्री ने डीजीपी से पूरे मामले को लेकर सात दिन में जवाब मांगा था। जवाब में देरी पर विज पहले से खफा चल रहे हैं। डीजीपी मनोज यादव की ओर से जवाब दिया गया है। चर्चायों के अनुसार इसमें कहा गया है कि हरियाणा सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही है। पुलिस महकमे से 75 अफसर परिवहन विभाग में भेजे गए हैं। 



विजिलेंस और सीआईडी में भी पुलिस महकमे से अधिकारी जाते हैं। जानबूझ कर स्टाफ नहीं दिया जा रहा, यह कहना गलत है। एडीजीपी श्रीकांत जाधव ने अपने पत्र में आरोप लगाए थे कि ब्यूरो के गठन के नौ माह बाद भी उनके पास कार्यालय नहीं है। कार्यालय की स्थापना को लेकर डीजीपी नकारात्मक रुख अपनाए हुए हैं। उनके साथ दर्जनों बार पत्राचार भी हुआ। व्हाट्सएप पर संदेश भी भेजे गए हैं, लेकिन कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में नशा तस्करी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कैसे की जा सकती है। 

26 मार्च को इस संदर्भ में गृह सचिव राजीव अरोड़ा को डीजीपी ने अवगत करवा दिया है। इस रिपोर्ट में विस्तार से जाधव की ओर से लिखे गए पत्र का जवाब दिया गया है। डीजीपी की ओर से यह जवाब इस मामले में पूरी रिसर्च करने के बाद दिया गया है। पत्र में कहा गया है कि हमने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को गाड़ी भेजी है। पुलिस के कर्मचारी और कंप्यूटर दिए हैं। साथ ही जहां पर आवश्यक हुआ वहां बजट का भी प्रावधान किया है। इस जवाब से गृह मंत्रालय असन्तुष्ट है।अनिल विज के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से प्रमुख नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ सौतेले रवैये पर, सुविधायें देने के नाम पर लीपापोती के मामले में गृह मंत्रालय पहले ही नाराज है। जब किसी सेना को हथियार व सुविधाओं का आभाव होगा तो वह रिजल्ट कैसे देगी?

डीजीपी के एक्सटेंशन पर भी पहले फंस चुका है पेच
गृह मंत्री अनिल विज वर्तमान डीजीपी मनोज यादव को किसी भी सूरत में एक्सटेंशन प्रदान करने के मूड में नहीं थे, वहीं  वर्तमान डीजीपी को एक साल का एक्सटेंशन आईबी की ओर से भी देने के बाद हरियाणा में नियुक्ति कायम है। उसके बावजूद अगर डीजीपी जाना चाहेंगे अथवा सरकार उनको भेजना चाहेगी, तो यह एक प्रशासनिक मामला है। इतना ही नहीं एक्सटेंशन से नाराज गृहमंत्री अनिल विज ने अब पत्र लिखकर वर्तमान पुलिस प्रमुख के कामकाज को लेकर अंसतुष्टि जाहिर करते हुए साफ कहा था कि किसान आंदोलन के साथ-साथ कानून व्यवस्था को लेकर डीजीपी कंट्रोल करने में पूरी तरह से असफल रहे हैं। विज ने अतीत में एक पत्र लिखकर एसीएस होम और सीएमओ के माध्यम से यह केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज जल्द ही राज्य की ओर से नामों का पैनल भेजने की बात भी सामने आई थी।

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उसमें वर्तमान डीजीपी मनोज यादव का नाम भी भेजा गया। इस तरह से सात नामों का पैनल तब आठ का हो गया। बाकी अफसरों में, पीके अग्रवाल, आकिल मोहम्मद और डॉक्टर आरसी मिश्रा के नाम शामिल हैं। सात वरिष्ठ आईपीएस अफसरों के नाम शामिल होंगे। इनमें तीन डीजी रैंक के अफसर और चार एडीजी रैंक के अफसर नियम और सेवा शर्तों, अनुभव आदि में शामिल हो रहे हैं। डीजीपी के लिए तीस साल की सेवा अनिवार्य की गई है। दूसरी तरफ छह माह से ज्यादा का सेवा कार्यकाल बचा होना चाहिए। लिहाजा 1984 बैच एसएस. देसवाल और 1986 बैच के केके सिंधु दौड़ से बाहर हो गए हैं, क्योंकि इनकी रिटायरमेंट इसी वर्ष 31 अगस्त को है। पैनल में 1988 बैच के पीके अग्रवाल, 1989 बैच से मोहम्मद अकिल और डॉक्टर आरसी मिश्रा के नामों पर ही विचार होगा। तीन दशक की नौकरी पूरी कर चुके अफसरों में 1990 बैच के एडीजीपी शत्रुजीत कपूर, देशराज सिंह, एसके जैन का नाम पैनल में शामिल होगा। 

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Content Writer

vinod kumar

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