दिल की सेहत पर खतरा: आधुनिक आदतें बिगाड़ रही हैं पारंपरिक संतुलन : डॉ. एजाज़ मंसूर

punjabkesari.in Thursday, Oct 09, 2025 - 05:05 PM (IST)

गुड़गांव ब्यूरो : कश्मीर घाटी, जहाँ कभी ताज़ा फल-सब्ज़ियाँ, सूखे मेवे और सक्रिय जीवनशैली रोज़मर्रा का हिस्सा हुआ करती थीं, अब वहाँ डॉक्टर चिंतित हैं कि आधुनिक आदतें कितनी तेज़ी से दिल की सेहत को बिगाड़ रही हैं। नई पीढ़ी पहले से कहीं ज़्यादा तली-भुनी चीज़ें, बेकरी आइटम और मीठे पेय पदार्थों का सेवन कर रही है, वहीं शहरीकरण, लंबी दूरी की यात्रा और सर्दियों की निष्क्रियता के कारण शारीरिक गतिविधि घट रही है। नतीजा है – हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और दिल की बीमारियाँ कम उम्र में ही दिखाई देने लगी हैं और तेज़ी से फैल रही हैं।

 

कार्डियोलॉजिस्ट कहते हैं कि इसमें विडंबना यह है कि कश्मीर का अपना पारंपरिक खानपान, अखरोट, बादाम, सूखे खुबानी, मौसमी साग जैसे हाक और सीमित मात्रा में चावल व मांस, दिल के लिए सुरक्षात्मक थे। लेकिन अब इनकी जगह ले रही है परिष्कृत चावल की अधिकता, वज़वान में ज़्यादा तेल, और नमक से भरे नून चाय का रोज़ाना इस्तेमाल। ऊपर से पैकेटबंद खाना और सॉफ्ट ड्रिंक्स दिल को हर तरफ़ से चुनौती दे रहे हैं। डॉ. एजाज़ मंसूर, सीनियर कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट, खैबर मेडिकल इंस्टीट्यूट, श्रीनगर, बताते हैं:“कश्मीर में दिल के लिए सबसे अच्छा और सबसे बुरा दोनों है। हमारे पास सूखे मेवे, केसर और ताज़ी सब्ज़ियाँ हैं जो धमनियों की रक्षा करते हैं। लेकिन हमारे पास रोज़ का नमक से भरा चाय, भारी चावल और तैलीय करी भी हैं जो दिल पर बोझ डालते हैं। सबसे ज़्यादा चिंता की बात है नई पीढ़ी, वे दोनों चीज़ें खा रहे हैं: पारंपरिक भारी भोजन और आधुनिक जंक फूड। यह दोहरी मार दिल को उसकी सीमा तक धकेल रही है। अगर हमें स्वस्थ परिवार चाहिए, तो हमें संस्कृति और सावधानी के बीच संतुलन बनाना होगा।”

 

 

उन्होंने आगे कहा कि शारीरिक गतिविधि, जो कभी कश्मीर की ज़िंदगी का स्वाभाविक हिस्सा हुआ करती थी] खेती, लंबी दूरी पैदल चलना और बाहरी कामकाज] अब लगभग ग़ायब हो गई है। “अब लोग घंटों मोबाइल पर रहते हैं, गाड़ियों ने पैदल चलने की आदत छीन ली है और बच्चों में बाहरी खेल कम हो गए हैं। यह निष्क्रियता उतनी ही खतरनाक है जितना अस्वस्थ भोजन। सर्दियों में भी घर के अंदर 30 मिनट की वॉक या योग दिल की सेहत को बदल सकता है।” डॉक्टर परिवारों से आग्रह कर रहे हैं कि दिल के लिए फायदेमंद परंपराओं को फिर से अपनाएँ। नून चाय में नमक कम करना, वज़वान के साथ सब्ज़ी और दाल का संतुलन, परिष्कृत चावल की जगह साबुत अनाज लेना और बच्चों को बाहरी गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करना व्यावहारिक कदम हैं। उनका कहना है कि सामुदायिक जागरूकता भी उतनी ही ज़रूरी है जितना इलाज, क्योंकि अस्पताल अकेले इस बढ़ते बोझ को संभाल नहीं सकते। श्रीनगर और पूरी घाटी में संदेश साफ़ है: दिल की रक्षा का मतलब संस्कृति छोड़ना नहीं, बल्कि संतुलन बहाल करना है। कश्मीर की ज़मीन वही भोजन देती है जो दिल को बचा सकता है, अब यह परिवारों पर निर्भर है कि वे सेहत चुनते हैं या चुपचाप नुकसान करने वाली आदतें।


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Content Editor

Gaurav Tiwari

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