पंजाब और यूपी के 2022 विधानसभा चुनावों में BJP-JJP दल मिलकर लड़ेंगे चुनाव
punjabkesari.in Thursday, Jul 15, 2021 - 01:28 PM (IST)
चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): पड़ोसी राज्य पंजाब और उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनावों में भाजपा और जजपा दल मिलकर आगे बढ़ सकते हैं। अपने पहले विधानसभा चुनाव में किंग मेकर की भूमिका तक पहुंची जजपा आत्मविश्वास और उत्साह से पूरी तरह से जहां लबरेज नजर आ रही है। वहीं पार्टी को चौ देवी लाल की किसान हितैषी छवि का भी लाभ मिलने की पूरी उम्मीद है। इन दोनों दलों की गठबंधन सरकार प्रदेश में बहुत समन्वय और आपसी तालमेल के साथ काम कर रही है। जजपा प्रधान महासचिव एवं इनसो राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय चौटाला ने पंजाब केसरी से इस महत्वपूर्ण विषय पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि पंजाब हमेशा से उनके लिए एक परिवार की तरह रहा है जिसके साथ हमारे बुजुर्गों का पुराना नाता रहा। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल परिवार और देवीलाल परिवार के संबंध जगजाहिर थे और आज भी यह संबंध अटूट हैं।
दिग्विजय चौटाला ने कहा कि दुष्यंत द्वारा जननायक जनता पार्टी का संगठन तैयार करते वक्त डॉ अजय सिंह जी ने एक बात बड़ी स्पष्टता से कही थी कि इस संगठन की कोई सीमाएं नहीं होंगी। हमें अपने पंखों का विस्तार करके और प्रदेशों में भी जाना है। उसी दिन से यह रणनीति पार्टी की विचारधारा में शामिल है। पार्टी संगठन जिसके लिए लगातार मेहनत कर रहा है। पंजाब चुनाव में भी हम हाथ आजमाने के लिए तैयार हैं। वहां के राजनीतिक धरातल, चुनावी समीकरणों और मौके की सरगर्मियां को भांपकर चुनाव लड़ने की तैयारी पर काम किया जाएगा।
इस मौके पर दिग्विजय चौटाला ने कहा कि रही बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तो वह तो ऐसा है जैसे हमारा घर। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हमारी संस्कृति और विचारधारा वाले ही हमारे भाई रहते हैं और इस क्षेत्र में चौ0 देवी लाल की नीतियों और उनकी विचारधारा में विश्वास करने वाले लोग हैं। लेकिन आज तक उन्हें कभी कोई विकल्प नहीं मिला। पश्चिम उत्तर प्रदेश के भोले-भाले लोगों ने किसान हितैषी के के नाम पर जिन्हें वोट दिए। वह लोग हमेशा वोट लेकर उन्हें ठगते रहे। अपने निजी हितों को पूरा करने के लिए समय-समय पर दल बदलते रहे। कभी जनता या क्षेत्र का भला नहीं सोचा। कभी किसी एक दल के साथ मजबूती के साथ नहीं खड़े हुए। जिस कारण से हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निश्चित ही अपने कदम बढ़ाएंगे और निश्चित तौर पर हमें लोगों का स्नेह, प्यार और आशीर्वाद मिलेगा।
हाल ही में किसान आंदोलन के नाम पर कुछ कथित किसान नेताओं द्वारा किसानों को भड़काने पर खूब काम किया जा रहा है। किसान नेता होने का दावा करने वाले राकेश टिकैत भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से संबंध रखते हैं। जिस कारण आंदोलन का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खास तौर पर जाट समाज में काफी देखने को मिल रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे जाट बाहुल्य स्थिति में हैं। जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी जजपा को एक तुरूप के इक्के के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। दुष्यंत के परिवार के साथ चौ0 देवी लाल का नाम जुड़ा हुआ है और चौ0 देवीलाल हमेशा किसानों के मसीहा माने जाते रहे हैं। तथाकथित इन किसान नेताओं की काट के रूप में डॉ अजय चौटाला- दुष्यंत तथा दीनबंधु चौ0 छोटू राम के नाती चौ0 बीरेंद्र सिंह डूमरखा को मैदान में उतार कर राजनीतिक फायदा उठा सकती है। चौ0 छोटूराम और चौधरी देवीलाल दोनों ही नेताओं की किसानों के दिलों में एक अलग छाप है। चौ0 बीरेंद्र सिंह डूमरखा भारतीय जनता पार्टी सरकार में केंद्रीय मंत्री और उनकी धर्मपत्नी प्रेमलता उचाना से विधायक रही हैं।और अब उनके पूर्व आईएएस पुत्र बृजेंद्र सिंह सांसद हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह दोनों परिवार रामबाण के रूप में काम कर सकते हैं और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करने का साफ मतलब लोकसभा चुनावों की आधी सीढ़ी को पार करना है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी अपने हर सफल प्रयोग इन चुनावों में करने वाली है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा में जाट आंदोलन को लेकर जाट समाज में भारतीय जनता पार्टी से काफी नाराजगी थी। भाजपा को उत्तर प्रदेश चुनाव में इसका नुकसान होने का डर था और हुआ भी वही। बड़ी संख्या में जाट समाज के लोगों (नेताओं) ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ माहौल तैयार करने की कोशिश की थी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के जाट चेहरों ने इस चुनाव की कमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संभाली और बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीत कर आए थे। जाट बहुल क्षेत्रों में सबसे मजबूत माने जाने वाली अजीत सिंह की पार्टी (रालोद) मात्र एक सीट छपरौली विधानसभा से ही जीत दर्ज कर पाने में सफल हुई थी। हालांकि जाट समाज के लोगों द्वारा वहां की जनता से भाजपा को हराकर भेजने का निवेदन किया गया था। लेकिन भाजपा इस चक्रव्यूह को भेदने में सफल साबित हुई थी। लोकसभा चुनावों के परिणाम भी इसी तरह के रहे।
अब फिर से कथित किसान नेता (इनमें से अधिकतर चेहरे वही हैं जो उस समय भी प्रचार में लगे हुए थे) फिर से विधानसभा चुनावों को लेकर एक्टिवेट हो चुके हैं। इससे यह तो साफ है कि इन कथित नेताओं की लड़ाई अपने समाज या किसान के मुद्दों की नहीं बल्कि केवल और केवल निजी हितों की है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी के रूप में इस खेल को खेलने के लिए तैयारी में जुटी है। बता दें कि अजीत सिंह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री किसान राजनेता चौ0 चरण सिंह के पुत्र हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी किसी भी हिसाब से किसी भी मामले को हल्के में लेने के मूड में नहीं है।
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