मुआवजा देने की बजाए बीजेपी-जेजेपी ने किसानों को छोड़ा पोर्टल भरोसे- हुड्डा

punjabkesari.in Tuesday, Mar 05, 2024 - 05:40 PM (IST)

चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी): पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसानों के लिए प्रति एकड़ कम से कम ₹40000 मुआवजा देने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा है कि पिछले दिनों हुई बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि से कई जिलों में किसानों की खड़ी फसल बर्बाद हो गई। कई जगह 100% तक खराबा हुआ है। ऐसे में किसानों को इस नुकसान की भरपाई के लिए तुरंत मुआवजे की जरूरत है। सरकार को जल्द गिरदावरी करवा के उन्हें आर्थिक मदद देनी चाहिए। पहले भी सरकार द्वारा घोषित राशि में से 422 करोड़ रूपया मुआवजा बकाया है। उसका भुगतान भी जल्द किया जाना चाहिए।

हुड्डा ने कहा कि हमेशा की तरह बीजेपी-जेजेपी ने किसानों को पोर्टल के भरोसे छोड़ दिया है। लेकिन हमेशा की तरह जरूरत के वक्त पोर्टल का सर्वर डाउन है और वो चल नहीं रहा। इसलिए किसान मुआवजे के लिए क्लेम तक नहीं कर पा रहे। यही वजह है कि किसानों को अपनी जायज मांग के लिए भी धरना प्रदर्शन करना पड़ रहा है। जरूरत के वक्त ना उनकी मदद के लिए सरकार आगे आई और ना ही बीमा कंपनियां। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सिर्फ कंपनियों की तिजोरी भरने का जरिया बन गई है।

पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे हुड्डा ने कहा कि नफे सिंह राठी के मामले में विपक्ष ने सीबीआई जांच की मांग की थी। क्योंकि कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने और अपराध पर नकेल कसने में बीजेपी-जेजेपी सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। हत्या, फिरौती, फायरिंग, लूट, डकैती और बलात्कार जैसी वारदातें आम हो गई हैं। हरियाणा में कांग्रेस सरकार बनने पर प्रदेश से अपराध का सफाया किया जाएगा। जिस तरह 2005 में सरकार बनने पर कांग्रेस ने कानून व्यवस्था को प्राथमिकता दी गई थी, उसी तरह एक बार फिर बदमाशों पर नकेल कसकर प्रदेश को सुरक्षित माहौल दिया जाएगा। 

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि बीजेपी-जेजेपी ने हरियाणा को अपराधियों की शरणस्थल बना दिया है। क्राइम रेट ज्यादा होने के चलते निवेशक अपने हाथ खींच रहे हैं। निवेश नहीं होने के चलते रोजगार सृजन नहीं हो पा रहा और बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। यही बेरोजगारी नशे और अपराध की जननी है, जिस पर नकेल कसना प्रत्येक सरकार की जिम्मेदारी होती है। लेकिन अपनी जिम्मेदारी को निभाने में मौजूदा सरकार पूरी तरह विफल है। खुद केंद्र सरकार का सामाजिक प्रगति सूचकांक और एनसीआरबी की रिपोर्ट इस बात की गवाही देते हैं।


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Content Editor

Nitish Jamwal

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