यहां रावण जलते ही बुझ जाती है रसोई, नहीं बनता खाना...., पीढ़ियों से चली आ रही ये अनोखी परंपरा

punjabkesari.in Tuesday, Sep 30, 2025 - 03:08 PM (IST)

यमुनानगर (सुरेंद्र मेहता) : विजयदशमी के त्यौहार पर पूरा देश रावण दहन की धूम में डूबा होता है। मगर इसी उत्सव के बीच एक ऐसा परिवार है, जिसके लिए यह दिन खुशियों से ज्यादा भावनाओं का प्रतीक है। जी हां, हम बात कर रहे हैं मनचंदा परिवार की, जो चार-पांच पीढ़ियों से रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाता आ रहा है।

मनचंदा परिवार, जिनके हाथों के हुनर से दशहरे की शाम रंगीन होती है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह परिवार रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशालकाय पुतले तैयार करता आ रहा है। यह इनका पेशा भी है और परंपरा भी। लेकिन पुतले बनाने वाले इस परिवार की कहानी उतनी ही अनोखी है, जितना कि उनका काम। त्योहार की रौनक इनके हुनर के बिना अधूरी है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि दशहरे के दिन इनके घर में न रसोई जलती है, न ही खाना बनता है। परिवार का मानना है कि जब रावण जलता है, तो उन्हें ऐसा लगता है मानो उनका कोई अपना बिछड़ गया हो। मनचंदा परिवार रावण को अपना गुरु मानता है।

चौथी और पांचवीं पीढ़ी रावण के पुतलों की अंतिम तैयारियों में जुटी हुई है। पिता महेंद्र मनचंदा और बेटे पंकज मनचंदा का कहना है कि छठी पीढ़ी के बच्चे भी अपनी इच्छा से जितना उनसे बन पाता है, उतना सहयोग करते हैं। हर साल मनचंदा परिवार ही यमुनानगर में रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के लगभग 70 फीट ऊंचे पुतले बनाने का काम करता है। 

खास बात यह है कि इनके बनाए पुतले बिना किसी सपोर्ट के खड़े किए जाते हैं। इन पुतलों को बनाने में लगभग 1 महीने का समय लग जाता है और यह काम पूरा परिवार मेहनत और शौक से करता है। पुतलों के लिए बाकायदा दर्जी से कपड़े भी सिलवाए जाते हैं और जब यह तैयार हो जाते हैं, तो इन्हें ढोल-नगाड़ों के साथ यानी राजाओं की शान और परंपराओं के मुताबिक दशहरा ग्राउंड में ले जाया जाता है, जहां विधिविधान से पूजा कर इनमें प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। 

मनचंदा परिवार रावण को अपना गुरु मानता है। ऐसे में जब रावण दहन होता है, तो इनका दिल उदास हो जाता है और दशहरे वाली रात इनके घर की रसोई नहीं जलती। आलम यह है कि विजयदशमी की रात बिना कुछ खाए-पिए ही सो जाना अब इस परिवार की परंपरा बन चुकी है। 


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Content Editor

Deepak Kumar

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