सतलुज यमुना लिंक नहर मुद्दा: ''पानी'' से पंजाब व हरियाणा के सियासी रिश्तों में आई ''दरार''

punjabkesari.in Thursday, Aug 20, 2020 - 10:09 PM (IST)

संजय अरोड़ा: वर्षों पुराना सतलुज-यमुना लिंक नहर का मुद्दा जहां अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है तो वहीं इस मुद्दे की वजह से हरियाणा और पंजाब की सियासत के समीकरण भी समय-समय पर बदलते रहे हैं। पंजाब की मालवा बेल्ट के 9 जिलों के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर जीवनदायिनी है और यह वहां के लाखों किसानों के जीवन से जुड़ा मसला है तो दक्षिण हरियाणा के लिए भी यह नहर काफी अहम है। 

ऐसे में दोनों ही राज्यों में जनमानस से जुड़े इस मसले पर जहां सियासी सरगर्मी बनी रहती है, वहीं यह एक ऐसा मुद्दा भी है, जिससे दोनों ही प्रदेश के नेताओं के रिश्तों में कड़वाहट भी पैदा होती रही है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव से करीब डेढ़ साल पहले तो शिरोमणि अकाली दल और इंडियन नेशनल लोकदल के चार दशक पुराने रिश्ते में दरार आ गई थी। दोनों ही दलों ने इस मुद्दे पर अपने सियासी रिश्ते तोडऩे तक का सार्वजनिक ऐलान कर दिया। 

इसी तरह से पंजाब में भी शिअद व भाजपा के बीच इस मुद्दे को लेकर कई बार परस्पर विरोधाभास की झलक देखने को मिली है। खास बात यह है कि दोनों ही राज्यों में कांग्रेस हाईकमान के लिए इस मुद्दे पर न उगलते बनता है और न ही निगलते। इस अंतर्राज्यीय मुद्दे पर कई बार ऐसी स्थिति भी पैदा हुई कि हरियाणा के कांग्रेस व भाजपा के बड़े नेताओं ने एस.वाई.एल. को लेकर हरियाणा के हितों के लिए तो आवाज उठाई, जबकि पंजाब में कांग्रेस व भाजपा के स्टैंड को लेकर जब-जब सवाल किए गए तो वे पीछे हटते नजर आए। इस प्रकार कुल मिलाकर एस.वाई.एल. के पानी ने पंजाब व हरियाणा के राजनेताओं के मजबूत रहे सियासी रिश्तों में दरार डालने का काम किया तो वहीं अनेक बार इन नेताओं को पंजाब को लेकर अपनी ही पार्टी में हास्यास्पद स्थिति का सामना करना पड़ा।

गौरतलब है कि सतलुज-यमुना लिंक नहर का मुद्दा 1966 में हरियाणा गठन होने के बाद से ही चला आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने नवम्बर 2016 में हरियाणा के हक में फैसला दिया था। दोनों ही राज्यों में यह मुद्दा किसानों से जुड़ा है। पंजाब का तर्क है कि अगर वह हरियाणा को पानी देता है तो मालवा बेल्ट की 9 लाख एकड़ भूमि पर सिंचाई संकट पैदा हो जाएगा, जबकि हरियाणा में अगर एस.वाई.एल. का पानी आता है तो आधा हरियाणा संवर जाएगा। यह दोनों ही प्रदेश कृषि प्रधान हैं। पंजाब में हर साल करीब 28 लाख जबकि हरियाणा में 13 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। चूंकि यह मुद्दा दोनों ही राज्यों में बड़े वोट बैंक को प्रभावित करता है, ऐसे में दोनों प्रदेश में राजनीतिक दलों में यह मुद्दा राजनीतिक खटास पैदा करता रहा है। 

इनेलो व शिअद के रिश्तों में नहर से आई थी खटास
दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे देवीलाल और कई बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल की दोस्ती राजनीतिक गलियारों में पगड़ी बदल भाई के रूप में विख्यात रही है। देवीलाल के निधन के बाद बादल और चौटाला में यह दोस्ताना बरकरार रहा। हालांकि सतलुज-यमुना लिंक नहर जैसे मुद्दे ने इनकी दोस्ती में भी खटास पैदा कर दी। हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनाव से करीब डेढ़ बरस पहले इनेलो ने अकाली दल से अपने सियासी रिश्ते तोड़ लिए। वजह थी अकाली दल ने विधानसभा में एस.वाई.एल. का पानी न देने संबंधी बिल पास कर दिया और पंजाब में अधिगृहित की गई जमीन भी किसानों को वापस कर दी। हालांकि बाद में विधानसभा चुनाव में दोनों ही दलों में यह राजनीतिक दरार भर गई।

एस.वाई.एल. पर बदलते रहे केजरीवाल के सुर
अरविंद केजरीवाल मूलत: हरियाणा के सिवानी के रहने वाले हैं और उनकी पार्टी आप हरियाणा में 2014 एवं 2019 का संसदीय चुनाव व पिछला विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी है। सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर केजरीवाल की वाणी दोनों ही राज्यों में बदलती रही है। पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले दिसम्बर 2016 में केजरीवाल ने सतलुज-यमुना लिंक नहर पर पंजाब के पक्ष में प्रतिक्रिया दी। 

केजरीवाल की ओर से पंजाब द्वारा किसी कीमत पर हरियाणा को पानी न देने के बयान के बाद सियासी पारा गर्मा गया था, जबकि हरियाणा के विधानसभा चुनाव के वक्त केजरीवाल ने एस.वाई.एल. पर हरियाणा के पक्ष में बयान दिया। केजरीवाल के इस स्टैंड पर दोनों ही राज्यों में नेताओं ने उन पर दोहरी सियासत करने के आरोप तक लगाए।


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vinod kumar

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