चक दे इंडिया से प्रेरित बेटी ने बढ़ाया तिरंगे का मान, पिता चलाते हैं पान की दुकान
punjabkesari.in Tuesday, Jun 27, 2023 - 05:12 PM (IST)

सोनीपत (सन्नी मलिक) : हरियाणा के खिलाड़ी लगातार अपनी प्रतिभाओं से देश का तिरंगा विदेशी धरती पर ऊंचा करते हैं। आज हम आपको जूनियर हॉकी टीम में अहम भूमिका निभाने वाली हॉकी खिलाड़ी मंजू के संघर्षों की कहानी बताने जा रहे हैं। जिसे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। सोनीपत के ब्रह्म नगर में निवासी मंजू की कहानी से देश की बेटियां प्रेरणा ले सकती हैं।
बिहार का रहने वाला एक परिवार करीब 39 साल पहले जीवन यापन व जरूरते पूरी करने के लिए सोनीपत में आकर बस गया था। दिन रात कड़ी मेहनत के बाद इस परिवार को 300 रूपये दिहाड़ी मिलती थी। जिससे पूरे परिवार का गुजारा चलता था। मंजू के पिता पहले फैक्ट्री में काम कर अपने परिवार का गुजारा करते थे। मंजू 3 भाई-बहनों में सबसे छोटी है। उसके 2 बड़े भाई प्राइवेट नोकरी करते है। मंजू ने 2010 में हॉकी पर बनी फिल्म चक दे इंडिया देखी। जिसके बाद उसने अपने मन मे ठानी कि उसे हॉकी में कुछ कर दिखाना है।
मंजू के हौंसले इतने बुलंद थे कि उसने अपने खेल के बीच में अपनी गरीबी को कभी आड़े नहीं आने दिया। मंजू की दोस्त उसे हॉकी के मैदान में लेकर गई और कोच से मिलाकर हॉकी व किट देकर खेलने के लिए दिया। जिसके बाद मंजू आगे बढ़ती गई, लेकिन परिवार की स्तिथि इतनी अच्छी नहीं थी कि उसे खेलने के लिए हर सुविधा उपलब्ध करा पाएं। मंजू के पिता मंजू को खेलने के लिए लगातार प्रेरित करते और उसकी जरूरतें पूरी करने के लिए दिन में 15-15 घण्टे मेहनत मजदूरी करते। मंजू के पिता ने बताया कि एक समय ऐसा था जब परिवार की स्तिथि अच्छी नहीं थी। मंजू के अलावा उसके दो बेटे हैं जिनको पढ़ाने लिखाने का भी खर्च होता था। इसके बावजूद भी वह मंजू के लिए डबल मेहनत करते, ताकि उनकी बेटी को किसी चीज की कमी महसूस न हो और वह खेल कर आगे बढ़ सके। मंजू अब फिलहाल रेलवे में कार्यरत है।
मंजू ने बताया कि उसने 2010 में हॉकी पर बनी बॉलीवुड फिल्म देखी। जिसके बाद उसने हॉकी खेलने का मन बनाया और कुछ करने की ठानी। उसका सपना है कि वह हॉकी में भारत की टीम को वर्ल्ड कप दिला सके। उनकी इस कामयाबी में उसकी कोच का अहम योगदान है। जिन्होंने उसे खेलने के लिए हॉकी व किट दिए। शुरू में हॉकी के किट खरीदने तक के पैसे नहीं होते थे, क्योंकि उनके पिता मजदूरी का काम करते हैं, जिसमें घर का गुजारा चलता था। उनके परिवार ने हमेशा उसे खेलने के लिए प्रेरित किया और उसकी मदद की। अब वह फिलहाल रेलवे में कार्यरत है। उसका सपना है कि वह अपनी टीम को वर्ल्ड कप दिला सके।
मंजू की कोच ने बताया कि वह जब छठी क्लास में थी जब उसके पास हॉकी खेलने के लिए आईं थीं। मंजू के परिवार की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह हॉकी का सामान खरीद सकें। इसके लिए मंजू को समान ग्राउंड में ही दिया जाता, ताकि वह प्रेक्टिस कर सके। मंजू ने इतनी मेहनत करी और आज वह जूनियर टीम की मेन खिलाड़ी है। 2 साल पहले मंजू ने उत्तर रेलवे जॉइन की है। उसका सपना है कि वह देश के लिए वर्ल्ड कप जीते और देश के तिरंगे की शान बढ़ाए।
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